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होली पर बना रहे घूमने का प्लान तो भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा और वृंदावन में आपके लिए है बहुत कुछ खास

3 years ago
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Holi 2022 types of holi celebration in Mathura Vrindavan barsana including Laddoo Lathmar Phoolonwali Widow | Holi Special Story: होली पर बना रहे घूमने का प्लान तो भगवान श्री कृष्ण की नगरी

04 मार्च 2022/    रंगो का त्यौहार होली (Holi) हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाते हैं। इस रंगों के उत्सव (Festival Of Colors) को देश के अलग- अलग हिस्से में अलग तरीकों के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार पर होलिका दहन (Holika Dahan) करने के बाद रंग खेला जाता है। लेकिन भारत जैसे विभिन्न मान्यताओं वाले देश में जहां हर जिले की सीमाओं के साथ बोली बदल जाती है, वहीं हर जगह के अलग रीति रिवाज भी हैं। अगर आप इस खास त्यौहार पर घूमने का प्लान बना रहें हैं तो आप भगवान श्री कृष्ण की नगरी और उसके आसपास की जगहों पर घूमकर अपनी होली स्पेशल बना सकते हैं।

बरसाने की लड्डू होली (Laddoo Holi, Barsana)

जहां देश की ज्यादातर जगहों पर एक ही दिन होली को मनाया जाता है वहीं भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा और वृंदावन में ये कई दिनों तक चलने वाला त्यौहार है। जबकि होली मुख्य रूप से रंगों का त्योहार है, बृजभूमि में लोग फूलों के अलावा लड्डू के साथ होली मनाते हैं। बरसाना राधा रानी का गांव है। यहां पर ब्रह्मगिरी पहाड़ियों की चोटी पर राधा रानी को समर्पित एक मंदिर है। होली का त्यौहार औपचारिक रूप से नंदगांव के लोगों को उत्सव के लिए बरसाना के लोगों को आमंत्रित करने के साथ शुरू होता है। इसे फाग आमन्त्रण उत्सव के नाम से जाना जाता है। बरसाना में इसी दिन लड्डू होली खेली जाती है। मंदिर में चमकीले पीले रंग के बूंदी के लड्डू एक दूसरे पर फेंके जाते हैं। पूरी जगह पीले रंग की हो जाती है। आखिर पीला रंग श्रीकृष्ण का प्रिय रंग है। ये होली शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन खेली जाती है।

लठमार होली बरसाना और नंदगांव (Lathmar Holi, Barsana and Nandgaon)

लठमार होली एक दिलचस्प परंपरा है जहां महिलाएं पुरुषों का पीछा करती हैं और उन्हें लाठी से पीटती हैं। इसलिए उत्सव को लट्ठमार होली के रूप में जाना जाता है। बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली बहुत जोश और धूमधाम से मनाते हैं। कहते हैं कृष्ण नंदगांव में रहते थे जबकि राधा बरसाना में रहती थीं। होली के दौरान, कृष्ण राधा से मिलने बरसाना जाते थे। वह राधा और उसकी सहेलियों को बहुत चिढ़ाते थे। इससे गोपियां और राधा इतनी नाराज हो जाती कि वे कृष्ण और उनके दोस्तों का लाठियों से पीछा करते और उन्हें पीटते। लट्ठमार होली के लिए बरसाना आने वाले नंदगांव के पुरुषों के साथ परंपरा को अभी भी जीवित रखा गया है। ये होली खेलते समय पुरुष पारंपरिक कपड़ो के साथ पगड़ी पहनते और अपने साथ एक ढाल भी रखते हैं और महिलाएं साड़ियों में पूरे पारंपरिक तरीके तैयार होकर लाठियां लेकर पुरुषों को पीटने निकलती हैं।

फूलों वाली होली (Phoolonwali Holi, Vrindawan)

वृंदावन में फूलों वाली होली खेली जाती है, इसमे रंगों के बजाए फूलों के साथ होली खेलते हैं। ये काफी अनोखा अनुभव होता है। शांतिनिकेतन में बसंत उत्सव में, सूखे रंगों या गुलाल के साथ होली मनाई जाती है, लेकिन फूलों के साथ होली खेलना काफी प्यारा होता है। वृंदावन में फूलों वाली होली वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में होली से पहले पड़ने वाली एकादशी को मनाई जाती है। शाम करीब साढ़े चार बजे मंदिर के कपाट खुलते हैं और उसके ठीक बाद फूलों की होली शुरू हो जाती है। यह लगभग 15 से 20 मिनट तक चलती है, जिसमें मंदिर के पुजारी मंदिर से भक्तों पर फूल फेंकते हैं।

वृंदावन की विधवाओं वाली होली (Widow’s Holi, Vrindavan)

भारत में विधवाओं का जीवन कठिन था। पहले के समय में उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता और उन्हें बहुत कठिन जीवन व्यतीत करना पड़ता था। उनमें से अधिकांश को वृंदावन और काशी के आश्रमों में भेज दिया जाता, क्योंकि परिवार वाले उन्हें अपने साथ रखना और उनकी देखभाल करना नहीं चाहते थे। ये आश्रम उनकी शरणस्थली और उनके सिर के ऊपर एक छत थे। ऐसे में एक विधवा का जीवन किसी भी रंग और आनंद से रहित हो जाता था। लेकिन फिर वृंदावन ने सदियों पुरानी परंपरा को खत्म किया और पागल बाबा के आश्रम में विधवाएं अब होली के दौरान रंग खेलती हुई त्यौहार का आनंद उठाती हुईं नजर आती हैं। वह वहां पर फूलों की पंखुड़ियों और रंगो के साथ होली खेलती हैं। विधवा होली की ये नेक पहल सुलभ इंटरनेशनल द्वारा की गई थी और 2013 में ही शुरू हुई थी।

बांके बिहारी मंदिर की होली (Banke Bihari Temple, Vrindavan)

बांके बिहारी मंदिर वृंदावन में होली के उत्सव का मुख्य केंद्र है। जबकि होली उत्सव बृंदावन और मथुरा में लगभग 4 दिनों तक चलता है, बांके बिहारी मंदिर में मुख्य कार्यक्रम मुख्य होली त्योहार से एक दिन पहले होता है। मंदिर के कपाट खुलते हैं और सभी को अंदर आने और स्वयं भगवान कृष्ण के साथ होली खेलने की अनुमति दी जाती है। पुजारी लोगों पर रंग और पवित्र जल फेंकते हैं। चारों ओर भजनों का जाप चलता है। यहां का वातावरण पूरी दुनिया से अलग होता है। ये होली सुबह साढे़ नौ बजे से शुरु होकर दोपहर ढेढ़ बजे तक चलती है।

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