क्यों खास है महाशिवरात्रि : इस पर्व पर भस्म का तिलक लगाने और रूद्राक्ष की माला पहनने से मिलता है पुण्य
28 फरवरी 2022/ शिवरात्रि का पर्व भगवान शिव के दिव्य अवतरण का मंगलसूचक है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। हर महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि व्रत होता है जो मासिक शिवरात्रि व्रत कहलाता है। लेकिन फाल्गुन महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस व्रत को अर्धरात्रिव्यापिनी चतुर्दशी तिथि में करना चाहिए। इस साल ये महा शिवपर्व 1 मार्च को मनाया जाएगा।
महाशिवरात्रि पर क्या करें
शिवपुराण के मुताबिक इस पर्व पर सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद सिर पर भस्म से त्रिपुंड और तिलक लगाएं। इसके बाद गले में रुद्राक्ष की माला पहनें। ऐसा करने से पुण्य मिलता है और जाने-अनजाने में हुए पाप भी दूर हो जाते हैं। इस दिन शिवालय जाकर शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन करें और भगवान शिव को प्रणाम करें। इसके बाद दिनभर व्रत या उपवास करना चााहिए। इससे कभी न खत्म होने वाला महापुण्य मिलता है।
शिवरात्रि: शिव तत्व वाली रात
शिवरात्रि का अर्थ है वो रात्रि, जिसका शिवतत्व के साथ घनिष्ठ संबंध है। भगवान शिवजी की अतिप्रिय रात्रि को शिवरात्रि कहा गया है। इस व्रत में रातभर जागरण और रुद्राभिषेक करने का विधान है।
स्कंदपुराण में कहा गया है कि महाशिवरात्रि का पूजन, जागरण और उपवास करने वाले का पुनर्जन्म नहीं हो सकता अर्थात उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। ब्रह्मा, विष्णु तथा पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने बताया कि शिवरात्रि व्रत करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है। शिव पुराण में मोक्ष के चार सनातन मार्ग बताए गए हैं। इन चारों में भी शिवरात्रि व्रत का विशेष महत्व है। अत: इसे अवश्य करना चाहिए।
विकारों से मुक्त करते हैं भगवान शिव
भगवान शिव हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सरादि विकारों से मुक्त करके परम सुख, शांति, ऐश्वर्य आदि प्रदान करते हैं। महाशिवरात्रि व्रत को व्रतराज भी कहा गया है। यह शिवरात्रि यमराज के शासन को मिटाने वाली है और शिवलोक को देने वाली है। शास्त्रोक्त विधि से जो इसका जागरण सहित उपवास करेंगे, उन्हे मोक्ष की प्राप्ति होगी। शिवरात्रि के समान पाप और भय मिटाने वाला दूसरा व्रत नहीं है। इसके करने मात्र से सभी पापों का क्षय हो जाता है।
वेद स्वरूप हैं शिव
शिव का अर्थ वेद होता है। कहा भी गया है ‘वेद: शिव: शिवो वेद:’यानी वेद शिव हैं और शिव वेद हैं। शिव वेदस्वरूप हैं। ये योग वेदाध्ययन, आध्यात्मिक चिंतन आदि शुरू करने के लिए उत्कृष्ट होता है। जितने भी बौद्धिक कार्य हैं; वे सभी शिव योग में उत्तम माने गए हैं। परोपकार, दयालुता एवं लोककल्याण के कार्य इस योग में बहुत ही सफलतादायक माने गए हैं।
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