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भीष्म द्वादशी रविवार को इस पर्व पर भीष्म पितामह के लिए किया जाता है श्राद्ध, इस दिन व्रत और तर्पण करने से तृप्त होते

3 years ago
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12 फरवरी 2022/    भीष्म द्वादशी पर्व माघ महीने के शुक्ल पक्ष की बारहवीं तिथि को मनाया जाता हैग। इस दिन भीष्म पितामह के निमित्त व्रत, पूजा और तर्पण किया जाता है। साथ ही भगवान कृष्ण की पूजा और महाभारत के भीष्म पर्व का पाठ किया जाता है। इसके बाद जरुरतमंद लोगों को गर्म कपड़े, भोजन और तिल का दान करने का भी विधान ग्रंथों में बताया गया है। ऐसा करने से पितामह भीष्म के आशीर्वाद से पितृ शांति होती है।

भीष्म ने अष्टमी पर प्राण त्यागे और द्वादशी पर होता है उनका श्राद्ध
महाभारत युद्ध में अर्जुन ने भीष्म पितामह को शरशैय्या (बाणों के बिस्तर) पर लेटा दिया था। कहा जाता है कि तब सूर्य के दक्षिणायन होने की वजह से भीष्म पितामह ने प्राण नहीं त्यागे, बल्कि 58 दिन तक शरशैय्या पर लेटे हुए ही सूर्य नारायण के उत्तरायण होने का इंतजार किया था। इसमें भी उन्होंने अपने मोक्ष के लिए माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को चुना। लेकिन उनके लिए तर्पण, श्राद्ध और अन्य धार्मिक कर्मकाण्ड द्वादशी तिथि पर भी किए जाते हैं।

पितरों की तृप्ति का दिन
इस दिन व्रत और पूजा के साथ ही भीष्म तर्पण और अपने पितरों की पूजा करनी चाहिए। इससे पितर तृप्त होते हैं और हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। पितरों की शांति के लिए इस दिन नदी-तालाब या घर में भी तर्पण कर सकते हैं। पितरों के निमित्त इस दिन ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान करना श्रेष्ठ माना जाता है।

भीष्म द्वादशी का महत्व
धर्म ग्रंथों के मुताबिक, इस व्रत से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और सुख व समृद्धि बढ़ती है। इस दिन स्नान-दान करने से सौभाग्य, धन-संतान की प्राप्ति होती है। भीष्म द्वादशी व्रत हर तरह का सुख और वैभव देने वाला होता है। इस दिन उपवास करने से पाप नाश होता है।

भीष्म द्वादशी व्रत और पूजा विधि
1. सुबह जल्दी नहाकर भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा और ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप करें।
2. भगवान की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुंकुम, दूर्वा का उपयोग करें।
3. पूजा में गंगाजल, पंचामृत और तुलसी पत्र का इस्तेमाल करें। केला और मेवा मिलाकर नैवेद्य भगवान को लगाएं।
4. भीष्म द्वादशी की कथा सुनें। देवी लक्ष्मी समेत सभी देवी-देवताओं की स्तुति करें। पूजा खत्म होने पर चरणामृत और प्रसाद बांटे।
5. ब्राह्मणों भोजन कराएं और दक्षिणा दें। फिर खुद भोजन करें और परिवार सहित अपने कल्याण धर्म, अर्थ, मोक्ष की कामना करें।

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