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इंसानियत की मिसाल बना MP के 200 युवाओं का ग्रुप, 6 महीने से हजारों लोगों तक पहुंचा रहे ब्लड, बेड, ऑक्सीजन और भोजन जैसी चीजें

3 years ago
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राजधानी भोपाल के अलावा इंदौर, देवास, शुजालपुर, रीवा, सतना, ग्वालियर सहित मध्य प्रदेश के कई शहरों से युवा इस ग्रुप से जुड़े हैं।

भोपाल12 घंटे पहलेलेखक: निकिता पाटीदार

भारत में हर साल करीब 1.4 करोड़ यूनिट ब्लड की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ 1.1 करोड़ यूनिट ब्लड ही मिल पाता है। कोविड महामारी में इस पर और भी बुरा असर पड़ा है। इस दौरान वॉलंटरी ब्लड डोनेशन न के बराबर हुआ। कई लोगों ने संक्रमण के डर से ब्लड डोनेट नहीं किया। जिसका असर कोरोना की दूसरी लहर में देखने को मिला। लोग ब्लड के लिए इधर-उधर अस्पतालों में भटकते दिखे। कई जगहों पर तो बेड, ऑक्सीजन, और प्लाज्मा जैसी चीजों की भी किल्लत थी।

ऐसे में मध्य प्रदेश के कुछ युवाओं ने लोगों की मदद के लिए मुहिम शुरू की। इस मुहिम का नाम ‘सहयोग’ है। इसमें मध्य प्रदेश से 200 से ज्यादा युवा जुड़े हैं। पिछले 6 महीने में ही ये लोग हजारों लोगों की मदद कर चुके हैं।

क्या है ‘सहयोग’?

 

राजधानी भोपाल के अलावा इंदौर, देवास, शुजालपुर, रीवा, सतना, ग्वालियर सहित मध्य प्रदेश के कई शहरों से युवा इस ग्रुप से जुड़े हैं।

‘सहयोग’ मध्यप्रदेश के 200 से ज्यादा युवाओं का एक ग्रुप है। कोरोना की दूसरी लहर से लेकर अब तक प्रदेशभर के ये युवा मरीजों की मदद कर रहे हैं। बेड, ऑक्सीजन, ब्लड, दवा, भोजन, अंत्येष्टि का सामान जैसी चीजें लोगों तक पहुंचा रहे हैं। महामारी के इस मुश्किल दौर में सोशल मीडिया के जरिए बना ये ग्रुप 24 घंटे अपनी सेवाएं दे रहा है। समूह में भोपाल के अलावा इंदौर, देवास, शुजालपुर, रीवा, सतना, ग्वालियर, होशंगाबाद, विदिशा, बैतूल, हरदा, जबलपुर, शाजापुर, विदिशा सहित कई शहरों के युवा जुड़े हैं। इनमें कॉलेज स्टूडेंट, रिसर्च स्कॉलर के साथ ही कुछ जूनियर डॉक्टर्स भी जुड़े हैं जो लोगों की मदद कर रहे हैं।

इस ग्रुप को शुरू करने वालों में से एक शुभम चौहान बताते हैं, ‘ पिछले साल 20 अप्रैल को इस ग्रुप की शुरुआत हुई थी। उस दौरान भारत में कोरोना का कहर था। सरकार लगातार कोशिशें कर रही थी, लेकिन जिंदगी और मौत के बीच भागदौड़ कर रहे लोगों को जानकारी नहीं थी कि सुविधाओं तक कैसे पहुंचा जाए। चुनौतियां इतनी बड़ी थीं कि एक-दूसरे की मदद किए बिना चीजें बेहतर नहीं हो सकती थीं। सभी को एक-दूसरे के सहयोग की जरूरत थी और यहीं से इस ग्रुप को नाम मिला और शुरुआत हुई। अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे युवा अपना सहयोग देने आगे आए और अब इस प्लेटफॉर्म के जरिए हजारों लोगों की मदद कर रहे हैं।

कैसे काम करता है सहयोग?

पिछले साल अप्रैल में इस ग्रुप की शुरुआत हुई थी। अब किसी को भी बल्ड की जरूरत होती है तो ये युवा तत्काल उसकी मदद के लिए जुट जाते हैं।
पिछले साल अप्रैल में इस ग्रुप की शुरुआत हुई थी। अब किसी को भी बल्ड की जरूरत होती है तो ये युवा तत्काल उसकी मदद के लिए जुट जाते हैं।

‘सहयोग’ नाम से सोशल मीडिया पर इन लोगों ने अपना पेज बनाया है। वहां ग्रुप का फोन नंबर भी दिया गया है। ब्लड डोनेशन की प्रोसेस बताते हुए टीम के मेंबर अभिलाष ठाकुर बताते हैं, ‘हमारे पास जैसे ही ब्लड की डिमांड आती है, हम तुरंत काम पर लग जाते हैं। किसी भी केस को लेने से पहले हम उसे वैरिफाई करते हैं। इस प्रोसेस में हम अटेंडर से हॉस्पिटल का रिक्वायरमेंट लेटर मांगते हैं। जिससे मरीज के साथ केस की भी पूरी जानकारी मिल सके। वेरिफिकेशन के बाद जिस शहर से डिमांड आ रही है, वहां के वॉलंटियर्स को इन्फॉर्म किया जाता है।

हमने 5 टीम बनाई हैं। इसमें बेड रिस्पॉन्स टीम, प्लाज्मा डेटा टीम, ऑक्सीजन सिलेंडर टीम, ब्ल्ड अरेंजमेंट टीम और वेरिफिकेशन टीम शामिल हैं। सभी से कोऑर्डिनेट करने का काम वेरिफिकेशन टीम करती है, जिससे किसी भी प्रकार का कन्फ्यूजन न हो और काम पूरी रफ्तार से चलता रहे। टीम सबसे पहले अपने आस-पास के लोगों में डोनर ढूंढने की कोशिश करती है, नहीं मिलने पर अन्य लोगों से कॉन्टैक्ट किया जाता है।

जैसे ही डोनर लोकेशन पर पहुंचने को तैयार हो जाते हैं, हम वाॅलंटियर के साथ उन्हें लोकेशन पर पहुंचा देते हैं। ब्लड फ्री में लोगों तक पहुंचाया जाता है। क्लिनिक की फीस या तो मरीज का परिवार देता है या फिर लोगों द्वारा दान में दिए गए पैसे से दी जाती है। ब्लड डोनेशन के बाद हमारी टीम में शामिल जूनियर डॉक्टर लोगों को एडवाइस देते हैं कि खुद को हाइड्रेट रखें, आयरन इनटेक बढ़ाएं और ज्यादा से ज्यादा आराम करें।

500 से ज्यादा लोगों को ऑक्सीजन भी उपलब्ध कराया है

ब्लड डोनेशन के साथ ही इस ग्रुप के युवा लोगों को राशन सामग्री और बाकी जरूरत की चीजें भी मुहैया करा रहे हैं।
ब्लड डोनेशन के साथ ही इस ग्रुप के युवा लोगों को राशन सामग्री और बाकी जरूरत की चीजें भी मुहैया करा रहे हैं।

अपनी टीम के काम पर गर्व महसूस करते हुए UPSC की तैयारी कर रहे अंकित सिंह कहते हैं- हमारी टीम ने ऑक्सीजन के लिए एक दिन में 200 से ज्यादा कॉल भी किए हैं। अभी तक 500 से ज्यादा लोगों को ऑक्सीजन भी उपलब्ध करवाई गई है। कई बार रात को 3-4 बजे खुद जाकर लोगों को हॉस्पिटल में भर्ती करवाया है। संक्रमित गर्भवती महिला जिसके पति की दो हफ्ते पहले मौत हुई, उसका प्रशासन के जरिए इलाज भी करवाया गया है।

कई लोगों की अंत्येष्टि भी करवाई गई है, जिनके बच्चे विदेश में फंस गए थे। किस्से इतने हैं कि उंगलियों पर गिने नहीं जा सकते। बस एक बात का सुकून है कि मुश्किल वक्त में जहां एक तरफ कुछ लोग दवाई-इंजेक्शन की धांधली कर रहे थे, वहीं हमारे साथ हर दिन कुछ ऐसे लोग जुड़ते जा रहे थे, जो इंसानियत के लिए मिसाल कायम कर रहे थे।

कई बार ऐसा भी हुआ जब टीम के पास केस मध्यप्रदेश के बाहर कश्मीर, केरल, पश्चिम बंगाल, उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों से आए। ऐसे में टीम ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म खास कर ट्विटर पर जानकारी शेयर कर मदद ली। प्रशासन से लेकर बॉलीवुड एक्टर पंकज त्रिपाठी और कवि कुमार विश्वास जैसी कई हस्तियों ने भी इस काम में मदद की।

परेशानियां और इनके समाधान

पिछले 6 महीने से यह ग्रुप लगातार लोगों की मदद कर रहा है। दिन-ब-दिन इस मुहिम से जुड़ने वाले युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है।
पिछले 6 महीने से यह ग्रुप लगातार लोगों की मदद कर रहा है। दिन-ब-दिन इस मुहिम से जुड़ने वाले युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है।

इस काम के दौरान ‘सहयोग’ के टीम मेंबर्स को कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है। अंकित बताते हैं, ‘ब्लड डोनेशन केस में सबसे ज्यादा परेशानी एसडीपी (सिंगल डोनर प्लेटलेट्स ) डोनेशन के दौरान होती है। एसडीपी के दौरान कई बार डोनर की नस नहीं मिलती या प्लेटलेट्स काउंट डिमांड के हिसाब से कम रह जाते हैं। ऐसे में हमें कई बार सिर्फ एक पेशेंट के लिए 8-10 डोनर ढूंढने पड़ते हैं। इस वजह से टेस्ट के दौरान फीस और मेहनत दोनों चीजें डबल हो जाती हैं, लेकिन हमारी टीम कभी भी पीछे नहीं हटती और इन चुनौतियों का सामना कर लोगों तक ब्लड पहुंचाती है।

वे बताते हैं- ब्लड डोनेशन कम होने की वजह से सबसे ज्यादा परेशानी थैलेसीमिया ग्रस्त लोगों को हो रही है। इस बीमारी में शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है। कई बार बच्चों को 15 से 20 दिन के अंतराल पर खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। शुरुआत में इतने डोनर ढूंढ पाना मुश्किल टास्क था। अच्छी बात ये है कि अब एक बार ब्लड डोनेट करने वाले 3 महीने बाद खुद फोन कर डोनेशन के लिए पूछते हैं। लोगों में एक बार फिर ब्लड डोनेशन के लिए जागरूकता बढ़ रही है।

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