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10 सालों में मौसम की चरम परिस्थिति वाली घटनाओं में 20 गुना बढ़ोतरी

4 years ago
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बंगाल की खाड़ी में पनप रहा है खतरनाक चक्रवाद 'बुरेवी - मौसम विभाग

 

 

 

 

 

04 जून 2021/    साल के सबसे गरम दिन कहे जाने वाले नौ दिन यानी नौतपा बुधवार को समाप्त हो गए। इस दौरान अधिकतम तापमान 30 मई को कोटा में 43 डिग्री था। ऐसा करीब 10 साल बाद हुआ, जब नौतपा में तापमान इतना कम रहा। विशेषज्ञ इसे मौसम की चरम परिस्थिति कह रहे हैं। बीते 10 सालों में मौसम की चरम परिस्थिति वाली घटनाओं में 20 गुना बढ़ोतरी हुई है। मौसम की चरम परिस्थिति का मतलब है भूस्खलन, भारी बारिश, ओले पड़ना, बादल फटने की घटनाओं में बढ़ोतरी। चक्रवात, सूखा और बाढ़ प्रभावित जिलों का बढ़ जाना। 1970-2005 के बीच 250 चरम जलवायु घटनाएं हुई थीं, लेकिन 2005-2020 बीच 310 चरम जलवायु घटनाएं दर्ज की गईं।

स्काईमेट के उपाध्यक्ष महेश पहलावत कहते हैं- मौसम की चरम परिस्थिति को इस तरह से समझा जा सकता है कि पहले केरल और मुंबई में बाढ़ आती थी, लेकिन अब गुजरात और राजस्‍थान में बाढ़ आने लगी है। भले बारिश की मात्रा में अधिक बदलाव नहीं है, लेकिन बारिश के औसत दिन (रेनी डे) कम हो गए हैं। अब मूसलधार बारिश हो रही है। 10 साल पहले जितनी बारिश तीन दिन में होती थी, अब वो तीन घंटे में हो जाती है। पहले चार महीनों तक नियमित रिमझ‌िम बारिश होती थी। पानी जमीन में रिसकर नीचे तक पहुंचता और जलस्तर बढ़ जाता था, लेकिन अब तेज बारिश के चलते सारा पानी बहकर नदियों में चला जाता है।

बारिश की मात्रा में बदलाव नहीं, पर जहां बाढ़, वहीं सूखा भी
अगर किसी दिन 2.4 मिलीमीटर से अधिक बारिश होती है तो उसे रेनी डे कहते हैं। पहले 1 जून से 30 सितंबर के बीच के 122 दिन में दीर्घावधि औसत (LPA) 880 मिलीमीटर के आसपास बारिश होती थी। अब भी बारिश की कुल मात्रा में अधिक बदलाव नहीं आया है, लेकिन बारिश वाले दिन अब 60 या इससे कम बचे हैं। ऐसे में तेज बारिश के चलते बाढ़ की स्थिति बन जाती है, लेकिन बेमौसम बारिश और तेज गर्मी के चलते उसी जगह पर सूखा की स्थिति भी बन जाती है।

 

प्रिपेयरिंग इंडिया फॉर एक्स्ट्रीम क्लाइमेट इवेंट्स रिपोर्ट के अनुसार 2005 से 2020 तक सूखा प्रभावित जिलों में 13 गुना बढ़ोतरी हो गई है। 2005 तक भारत में सूखे से प्रभावित जिले केवल 6 बचे थे, लेकिन बाद में मौसम में तेजी से आए बदलाव के चलते अब इनकी संख्या 79 हो गई है। इसमें चौंकाने वाली बात ये है कि अब 40% बाढ़ ग्रस्त जिले ही सूखे का भी सामना करते हैं।

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