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  • ये हैं नक्सल प्रभावित गांवों की डॉक्टर दीदी : 10 हजार लोगों को 8 साल से सेवाएं दे रहीं ये नर्स; रोज 35 से 40 किमी का पैदल सफर, रात हो जाए तो जंगल को बना लेती है ठिकाना

ये हैं नक्सल प्रभावित गांवों की डॉक्टर दीदी : 10 हजार लोगों को 8 साल से सेवाएं दे रहीं ये नर्स; रोज 35 से 40 किमी का पैदल सफर, रात हो जाए तो जंगल को बना लेती है ठिकाना

4 years ago
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नारायणपुर की रहने वाली 30 साल की कविता जाटलूर सहित पदमेटा, रासमेटा, कारंगुल, मुरुमवाड़ा, बोटेर, डूडी मरका और लंका के 10 हजार से अधिक ग्रामीणों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचा रही हैं।

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जगदलपुर/नारायणपुर , 12 मई 2021/   छत्तीसगढ़ का नक्सल प्रभावित जिला नारायणपुर। यहां का ओरछा ब्लॉक पूरी तरह से नक्सलियों के कब्जे में है। यहां न मोबाइल की कनेक्टिविटी है और न ही सड़कें, पर लोगों का प्यार है। इसी प्यार ने एक नर्स कविता पात्र को ‘डॉक्टर’ दीदी बना दिया है। जाटलूर में पदस्थ कविता ANM हैं और पिछले 8 सालों से यहां के ग्रामीण इलाकों में अपनी सेवाएं दे रही हैं। इस काम में उनका साथ पुरुष स्वास्थ्य कर्मी भीमराव सोढ़ी भी देते हैं।

जाटलूर में पदस्थ कविता ANM हैं और पिछले 8 सालों से यहा के ग्रामीण इलाकों में अपनी सेवाएं दे रही हैं। इस काम में उनका साथ पुरुष स्वास्थ्य कर्मी भीमराव सोढ़ी भी देते हैं।

जाटलूर में पदस्थ कविता ANM हैं और पिछले 8 सालों से यहा के ग्रामीण इलाकों में अपनी सेवाएं दे रही हैं। इस काम में उनका साथ पुरुष स्वास्थ्य कर्मी भीमराव सोढ़ी भी देते हैं।

नारायणपुर की रहने वाली 30 साल की कविता जाटलूर सहित पदमेटा, रासमेटा, कारंगुल, मुरुमवाड़ा, बोटेर, डूडी मरका और लंका के 10 हजार से अधिक ग्रामीणों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचा रही हैं। इन गांवों तक पहुंचने के लिए कविता को नदी-नाले, घना जंगल, पहाड़ी और पथरीले रास्तों को पार करना पड़ता है। यहां कोई स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं है। ऐसे में गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी, बच्चों को टीका और बीमार को दवाई देने का भी कविता ही करती हैं।

नारायणपुर की रहने वाली 30 साल की कविता जाटलूर सहित पदमेटा, रासमेटा, कारंगुल, मुरुमवाड़ा, बोटेर, डूडी मरका और लंका के 10 हजार से अधिक ग्रामीणों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचा रही हैं।

रोज 35 से 40 किमी का पैदल सफर, रात हो जाए तो जंगल आशियाना
जाटलूर से मेडिकल किट लेकर वह गांव-गांव के लिए निकलती हैं। ऐसे में रोजाना उन्हें 35 से 40 किमी का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है। इस दौरान ग्रामीणों का इलाज करते-करते अक्सर शाम हो जाती है या पैदल लौटते हुए थक जाते हैं। ऐसे में नक्सलियों के इसी इलाके के जंगल उनके लिए आशियाना बनते हैं। ये एक बार नहीं, बल्कि कई बार हो चुका है। इन सबके बीच नक्सलियों के साथ-साथ जंगली जानवरों का डर भी हमेशा बना रहता है।

ओरछा ब्लॉक का बड़ा इलाका पूरी तरह से नक्सलियों के कब्जे में है। यहां पर नक्सलियों ने जगह-जगह IED बिछा रखी है, तो कई जगहों पर स्पाइक्स होल भी बने हुए हैं।

 

ओरछा ब्लॉक का बड़ा इलाका पूरी तरह से नक्सलियों के कब्जे में है। यहां पर नक्सलियों ने जगह-जगह IED बिछा रखी है, तो कई जगहों पर स्पाइक्स होल भी बने हुए हैं।

 

लंका जाने के लिए दो जिलों को करती हैं पार, रास्ते में IED और स्पाक्स होल का खतरा भी
ओरछा ब्लॉक का बड़ा इलाका पूरी तरह से नक्सलियों के कब्जे में है। यहां पर नक्सलियों ने जगह-जगह IED बिछा रखी है, तो कई जगहों पर स्पाइक्स होल भी बने हुए हैं। ऐसे में पैदल सफर करते हुए रोज इन्हें पार करना जान जोखिम में ही डालना है। ब्लॉक के लंका गांव तक पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों से होकर जाना पड़ता है। इसकी दूरी करीब 130 किमी है, लेकिन यहां के ग्रामीण पूरी तरह से कविता पर ही निर्भर हैं।

नक्सलगढ़ के जिन 8 गांवों की जिम्मेदारी मुझ पर है, वहां ग्रामीणों का प्यार भी मुझे भरपूर मिलता है। इलाके के ग्रामीण मुझे प्यार से डॉक्टर दीदी कह कर पुकारते हैं। ग्रामीणों के इसी प्यार की वजह से मैं पिछले 8 सालों से इनकी सेवा में लगी हूं।
– कविता पात्र, ANM, ओरछा ब्लॉक, नारायणपुर

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