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राज्य केंद्र के बीच चिट्ठी-चिट्ठी : मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्रीय खाद्य मंत्री पीयूष गोयल को लिखा पत्र, सेंट्रल पूल में 40 लाख मीट्रिक टन चावल देने की अनुमति मांगी
90 लाख मीट्रिक टन से अधिक धान खरीद चुकी है सरकार
24 लाख मीट्रिक टन चावल जमा करने की ही अभी तक अनुमति
रायपुर, 29 जनवरी 2021/ धान खरीदी और सेंट्रल पूल में चावल जमा करने को लेकर राज्य और केंद्र सरकार के बीच चिट्ठी-चिट्ठी की प्रक्रिया फिर शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज केंद्रीय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने सेंट्रल पूल में चावल जमा करने की मात्रा केा 24 लाख मीट्रिक टन से बढ़ाकर 40 लाख मीट्रिक टन करने की मांग की है।
मुख्यमंत्री ने लिखा, केंद्र सरकार की खाद्य सचिवों की बैठक में छत्तीसगढ़ के लिए 60 लाख मीट्रिक टन चावल सेंट्रल पूल में लिये जाने की सैद्धांतिक सहमति मिली थी। ऐसा होता तो करीब 89 लाख मीट्रिक टन धान का इस्तेमाल हो जाता। लेकिन केंद्रीय खाद्य विभाग ने भारतीय खाद्य निगम में सेंट्रल पूल के तहत केवल 24 लाख मीट्रिक टन चावल जमा करने की ही अनुमति दी है।
मुख्यमंत्री ने बताया, राज्य की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए 20 लाख मीट्रिक टन चावल की आवश्यकता होगी। इसके अलावा राज्य का नागरिक आपूर्ति निगम करीब 3 लाख मीट्रिक टन चावल का स्टॉक रखेगा। इस तरह सेंट्रल पूल और राज्य के PDS को मिलाकर 47 लाख मीट्रिक टन चावल ही खप पाएगा। इसके लिए मात्र 70.50 लाख मीट्रिक टन धान लगेगा।
मुख्यमंत्री ने केंद्रीय खाद्य मंत्री को केंद्र और राज्य सरकार के बीच अनाज खरीदी के लिए हुए MOU का स्मरण कराया है। उन्होंने लिखा, MOU की धारा 18 के तहत उपार्जित धान में से राज्य की PDS की आवश्यकता के अतिरिक्त चावल का स्टॉक भारतीय खाद्य निगम को देने के निर्देश हैं। ऐसे में केंद्र सरकार को अविलंब 40 लाख मीट्रिक टन चावल जमा करने की अनुमति जारी करनी चाहिए।
राज्य सरकार पर आएगा 2500करोड़ का भार
मुख्यमंत्री ने लिखा है, अगर केंद्र सरकार ने चावल जमा करने की अनुमति नहीं दी तो राज्य सरकार को बड़ा आर्थिक नुकसान होगा। इस अतिरिक्त बचे धान के निराकरण में लगभग 2500 करोड़ रुपए की आर्थिक हानि संभावित है। यह राज्य सरकार को वहन करनी पड़ेगी।
न्याय योजना पर भी दिया स्पष्टीकरण
मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में सरकार की राजीव गांधी किसान न्याय योजना पर भी स्पष्टीकरण दिया है। उन्होंने लिखा, राज्य सरकार ने धान खरीदी में न्यूनतम समर्थन मूल्य के अतिरिक्त किसी भी प्रकार के बोनस भुगतान की घोषणा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से नहीं की है। केंद्र सरकार ने पहले भी राज्य में चल रही “राजीव गांधी किसान न्याय योजना” के संबंध में जानकारी मांगी थी। छत्तीसगढ़ के खाद्य विभाग ने वह जानकारी भी केंद्र सरकार को भेज दिया है।
दाम से जुड़ा है खरीदी का विवाद
दरअसल सरकारी धान खरीदी में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसल का पूरा भुगतान केंद्र सरकार करती है। केंद्र सरकार ने 2014-15 से ही समर्थन मूल्य के अतिरिक्त बोनस देने पर रोक लगा दिया है। 2018 में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने धान का प्रति क्विंटल दाम 2500 रुपए कर दिए। इसमें समर्थन मूल्य के अतिरिक्त रकम का भुगतान राज्य सरकार करती है। 2018-19 में इसी दर पर खरीदी हुई। 2019-20 में केंद्र सरकार ने इसे बोनस मानते हुए छत्तीसगढ़ का चावल लेने से इन्कार कर दिया।
बाद में सरकार राजीव गांधी किसान न्याय योजना लेकर आई। इसके तहत धान, मक्का, गन्ना जैसी फसलों के लिए प्रति एकड़ 10 हजार रुपया सालाना देने का इंतजाम हुआ। केंद्र सरकार इस योजना को भी बोनस देने की कोशिश मान रही है। यही टकराव का बिंदु है। खाद्य सचिवों की बैठक मेंं 60 लाख मीट्रिक टन चावल लेने की सहमति के बाद भी केंद्र सरकार ने केवल 24 लाख मीट्रिक टन चावल लेने की अनुमति दी है। वह भी काफी हंगामे के बाद।