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गणतंत्र दिवस पर छत्तीसगढ़ की झांकी : राजपथ पर दिखेगा बस्तर का धनकुल, मुंडा बाजा और सरगुजा का घसिया ढोल, रक्षा मंत्रालय ने दी मंजूरी

4 years ago
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रक्षा मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ के इसी मॉडल को 26 जनवरी की परेड में शामिल करने की मंजूरी दी है।
कड़ी स्पर्धा के बाद हुआ झांकी का चयन, कलाकारों ने शुरू की प्रदर्शन की तैयारी

 

रायपुर, 01 जनवरी 2021/  गणतन्त्र दिवस पर इस बार नई दिल्ली के राजपथ पर छत्तीसगढ़ के लोक संगीत का वाद्य वैभव दिखेगा। गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह के लिए छत्तीससगढ़ राज्य की झांकी को रक्षा मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति ने मंजूरी दे दी है। सांस्कृतिक झांकी में बस्तर क्षेत्र का लोकवाद्य धनकुल, मुंडा बाजा, चिकारा, मांदर और सरगुजा क्षेत्र का प्रतिनिधि वाद्य घसिया ढोल भी शामिल है।

अधिकारियों ने बताया, झांकी में छत्तीसगढ़ के दक्षिण में स्थित बस्तर से लेकर उत्तर में स्थित सरगुजा तक विभिन्न अवसरों पर प्रयुक्त होने वाले लोक वाद्य शामिल किए गए हैं। इनके माध्यम से छत्तीसगढ़ के स्थानीय तीज त्योहारों तथा रीति रिवाजों में निहित सांस्कृतिक मूल्यों को भी रेखांकित किया गया है।

इस विषयवस्तु पर आधारित झांकी को पांच राउंड की कठिन प्रक्रिया के बाद अंतिम स्वीकृति मिली है। अब कलाकार दिल्ली जाने की तैयारी में हैं। बताया जा रहा है कि जनवरी के प्रथम सप्ताह में संस्कृति विभाग का सांस्कृतिक दल दिल्ली पहुंच जाएगा। देश के विभिन्न राज्यों के बीच कड़ी स्पर्धा और कई चरणों से गुजरने के बाद अंतिम रूप से छत्तीसगढ़ की झांकी का चयन हुआ है। तीन महीने तक कलाकारों की वेषभूषा और संगीत पर शोध कर त्री-आयामी मॉडल तैयार किया गया।

इसे ही रक्षा मंत्रालय की विशेषज्ञ कमेटी ने सलेक्ट किया है। अब 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य परेड में यह झांकी देश-विदेश के लोगों को आदिवासी क्षेत्र की समृद्ध और विविधतापूर्ण संगीत परंपरा से परिचित कराएगी। छत्तीसगढ़ की झांकी पिछली बार भी गणतंत्र दिवस परेड का हिस्सा थी।

 

झांकी की दीवारों पर भी बस्तर और सरगुजा क्षेत्र की भित्ति चित्रकला के उदाहरण उकेरे गए हैं।

 

झांकी की दीवारों पर भी बस्तर और सरगुजा क्षेत्र की भित्ति चित्रकला के उदाहरण उकेरे गए हैं।

इन बाजों की समृद्ध विरासत

छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक झांकी की निर्माण प्रक्रिया में शामिल रहे लोकवाद्य संग्रहकर्ता रिखी क्षत्री ने बताया, आदिवासी क्षेत्रों में इन वाद्यों की समृद्ध परंपरा रही है। इसमें शामिल मुंडा बाजा बस्तर की पहचान में शामिल है। इसके बिना माता दंतेश्वरी के कुछ अनुष्ठान अधूरे माने जाते हैं। वहीं देव नगाड़ा, देव स्थानों में ही बजाया जाता है। राजपथ पर प्रदर्शन के दौरान इन वाद्य यंत्रों के सुर भी सुनने को मिलेंगे।

यह वाद्य यंत्र शामिल हैं

धनकुल, अलगोजा, खंजेरी, नगाड़ा, टासक, बांस बाजा, नकदेवन, बाना, चिकारा, टुड़बुड़ी, डांहक, मिरदिन, मांदर, मांडिया ढोल, तुरही, गुजरी, सिंहबाजा या लोहाटी, टमरिया, घसिया ढोल, तम्बुरा।

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