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5 दिनों का दीपोत्सव पर्व 12 से 16 नवंबर तक, धनतेरस दो दिन लेकिन पूजा शुक्रवार शाम 6 बजे के बाद करना ही श्रेष्ठ
समुद्र मंथन में भगवान धन्वंतरि कलश में अमृत लेकर निकले थे, इसलिए इस दिन धातु के बर्तन खरीदने की परंपरा
शनिवार को सुबह रूप चौदस और शाम को होगी लक्ष्मी पूजा
रायपुर, 12 नवम्बर 2020/ पांच दिनों का दीपोत्सव पर्व आज (12 नवंबर) से शुरू हो रहा है। पंचांग भेद के कारण इस बार धनतेरस को लेकर असमंजस बना हुआ है। धनतेरस का पर्व इस बार गुरुवार और शुक्रवार को मनेगी। ज्योतिष के अनुसार शुक्रवार को शाम 6 बजे के बाद धनतेरस की पूजा करना शास्त्रों की दृष्टि से सही होगा। धनतेरस समय अनुसार गुरुवार रात 9.30 बजे ही शुरू हो रहा है। शुक्रवार को 13 दीये जलाए जाएंगे। अगले दिन शनिवार को सुबह रूप चौदस और शाम को दीपावली मनाई जाएगी। इसी दिन यानी शनिवार को लक्ष्मी पूजा की जाएगी। नरक चौदस के दिन 14 दीये जलाए जा सकते है। ज्योतिषाचार्य डॉ. दत्तात्रेय होस्केरे ने बताया कि धनतेरस त्रयोदशी का व्रत है। जिसे प्रदोष कहा जाता है। सूर्यास्त के बाद दो घंटे 24 मिनट का समय प्रदोष कहलाता है। गुरुवार, यानी 12 नवंबर को चुंकि रात 9.30 बजे तक द्वादशी तिथि है। इसीलिए गुरुवार को दिन धनतेरस की पूजा नहीं की जा सकती लेकिन 13 नवंबर शुक्रवार को शाम को 5.59 बजे तक त्रयोदशी है, जो कि प्रदोष का काल है। वहीं शुक्रवार को शाम 6 बजे के बाद धनतेरस की पूजा करना शास्त्रों की दृष्टि से सही होगा। वहीं शुक्रवार को धनतेरस के 13 दीए और शनिवार की सुबह को रूप चौदस या नरक चौदस के 14 दीये जलाए जा सकते है। इसी दिन शाम को लक्ष्मी पूजा होगी। मान्यता ऐसी है कि धन तेरस या धन त्रयोदशी का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि देवों और असुरों के मध्य हुए समुद्र मंथन की प्रक्रिया के मध्य इसी दिन धनवंतरी अमृत कलश लेकर अवतरित हुए थे। शास्त्रों में यह भी अभिव्यक्त है कि चूंकि धनवंतरी कलश लेकर प्रकट हुए थे, इस दिन पात्र का क्रय किया जाए तो पात्र की धारणीय क्षमता से तेरह गुना धन और ऐश्वर्य प्राप्त होने के योग बनते हैं। इस दिन चांदी और पीतल के बर्तन खरीदने से मानसिक शांति मिलती है और शरीर भी पुष्ट होता है। माता लक्ष्मी की आराधना के ठीक दो दिन पहले धनवंतरी की आराधना का महत्व इसीलिए भी ज्यादा है क्योंकि धनवंतरी देवों के चिकित्सक और देवों के उत्तम स्वास्थ्य के निरिक्षक है। माता लक्ष्मी से ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करने से पूर्व यदि उत्तम स्वास्थ्य भी प्राप्त कर लिया जाए तो ऐश्वर्य का उपभोग भी किया जा सकेगा।
विद्वानों के मुताबिक, धनतेरस पर शाम के समय लक्ष्मी और कुबेर की पूजा व यम दीपदान के साथ ही खरीदी के लिए भी श्रेष्ठ समय रहेगा। धनतेरस पर खरीदारी की परंपरा होने से पूरे दिन खरीदी की जा सकती है।
परिवार में समृद्धि को अक्षत रखने की कामना से ही इस दिन चांदी के सिक्के, गणेश व लक्ष्मी प्रतिमाओं की खरीदारी करना शुभ होता है। साथ ही सोने-चांदी की चीजें खरीदने की भी परंपरा है। इसके अलावा पीतल, कांसे, स्टील व तांबे के बर्तन भी खरीदने की प्रथा है।
धन्वंतरि भी इसी दिन अवतरित हुए थे, इसी कारण भी इस दिन को धनतेरस कहा गया है। समुद्र मंथन में भगवान धन्वंतरि कलश में अमृत लेकर निकले थे, इसलिए इस दिन धातु के बर्तन खरीदते हैं।
पूजा विधि और दीपदान
भगवान धन्वंतरि को पूजा सामग्री के साथ औषधियां चढ़ानी चाहिए। औषधियों को प्रसाद के तौर पर खाने से बीमारियां दूर होती हैं।
भगवान धन्वंतरि को कृष्णा तुलसी, गाय का दूध और उससे बने मक्खन का भोग लगाना चाहिए।
पूजा में लगाए गए दीपक में गाय के घी का इस्तेमाल करना चाहिए।
सूर्यास्त के बाद यमराज के लिए दीपदान जरूर करना चाहिए।
इसके लिए आटे से चौमुखा दीपक बनाना चाहिए। उसमें सरसों या तिल का तेल डालकर घर के बाहर दक्षिण दिशा में या दहलीज पर रखना चाहिए।
ऐसा करते हुए यमराज से परिवार की लंबी उम्र की कामना करनी चाहिए।
स्कंद पुराण के मुताबिक, धनतेरस पर यमदेव के लिए दीपदान करने से परिवार में अकाल मृत्यु का डर नहीं रहता।
प्रदोष काल: सूर्यास्त के बाद 2 घंटे 24 मिनट का समय