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छत्तीसगढ़ में महाष्टमी : मंदिरों में हवन-पूजन, लेकिन प्रदेश के प्रमुख मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए नहीं खुले पट

4 years ago
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कोरोना संक्रमण के चलते प्रशासन ने प्रमुख देवी मंदिरों में प्रवेश पर लगा रखी है रोक

मंदिर समिति ही अंदर कर रही पूजन की व्यवस्था, श्रद्धालुओं के नाम की जलाई गई है ज्योत

 

रायपुर, 24 अक्टूबर 2020/   शारदीय नवरात्रि पर भी इस बार कोरोना का साया है। महाष्टमी का शनिवार को पूजन और अर्चन हो रहा है, लेकिन छत्तीसगढ़ के प्रमुख देवी मंदिरों के पट श्रद्धालुओं के लिए बंद हैं। मंदिर समिति ही अंदर पूजन की व्यवस्था कर रही है। श्रद्धालुओं के नाम की ज्योत जरूर जलाई गई है। हालांकि रायपुर के महामाया और अंबे मंदिर में श्रद्धालु सीमित संख्या में ही पूजन करने पहुंचे हैं।

कोरोना के चलते श्रद्धालुओं को आरती में भी शामिल नहीं किया गया है। आरती लेने के लिए भी श्रद्धालुओं को बाहर खड़ा किया गया और खिड़की से दर्शन कराए गए।
कोरोना के चलते श्रद्धालुओं को आरती में भी शामिल नहीं किया गया है। आरती लेने के लिए भी श्रद्धालुओं को बाहर खड़ा किया गया और खिड़की से दर्शन कराए गए।

रायपुर के पुरानी बस्ती स्थित महामाया मंदिर में श्रद्धालुओं की लाइन लगी है। हालांकि हर बार की अपेक्षा इस बार भीड़ बहुत कम है। मंदिर के अंदर एक बार में दो लोगों से ज्यादा लोगों को नहीं जाने दिया जा रहा है। मंदिर के अंदर पुजारी ही हवन पूजन कर रहे हैं। लोगों को आरती और पूजन में शामिल होने की अनुमति नहीं है। दर्शन के लिए मंदिर प्रबंधन ने बाहर स्क्रीन लगवाई है।

पुरानी बस्ती स्थित महामाया मंदिर में श्रद्धालुओं की लाइन लगी है। हालांकि हर बार की अपेक्षा इस बार भीड़ बहुत कम है। मंदिर के अंदर एक बार में दो लोगों से ज्यादा लोगों को नहीं जाने दिया जा रहा है।
पुरानी बस्ती स्थित महामाया मंदिर में श्रद्धालुओं की लाइन लगी है। हालांकि हर बार की अपेक्षा इस बार भीड़ बहुत कम है। मंदिर के अंदर एक बार में दो लोगों से ज्यादा लोगों को नहीं जाने दिया जा रहा है।

द्वार से सीधे नहीं दिखती मां महामाया, सूर्यास्त में किरणें करती हैं चरण स्पर्श
रायपुर में मां महामाया देवी मंदिर में विराजी मां की मूर्ति द्वार से सीधे नहीं दिखाई देती। मान्यता है कि कल्चुरि वंश के राजा मोरध्वज, खारुन नदी से प्रतिमा को सिर पर उठाकर पैदल ले जा रहे थे, थक गए तो उन्हें शिला पर रख दिया। रखते समय प्रतिमा थोड़ी तिरछी हो गई और फिर नहीं उठी। वास्तु शास्त्र और तांत्रिक पद्धति से निर्मित मंदिर की प्रतिमा पर सूर्यास्त के समय किरणें माता के चरणों का स्पर्श करती हैं।

रावांभाठा स्थित मां बंजारी मंदिर में दर्शन के लिए सुबह से हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ रहे हैं। मान्यता है कि बंजर धरती से प्रतिमा प्रकट होने के कारण बंजारी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुई।
रावांभाठा स्थित मां बंजारी मंदिर में दर्शन के लिए सुबह से हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ रहे हैं। मान्यता है कि बंजर धरती से प्रतिमा प्रकट होने के कारण बंजारी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुई।

बंजारी माता मंदिर रायपुर : रावांभाठा स्थित मां बंजारी मंदिर में दर्शन के लिए सुबह से हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ रहे हैं। मान्यता है कि बंजर धरती से प्रतिमा प्रकट होने के कारण बंजारी देवी के नाम से प्रसिद्ध हुई। बंजारा जाति के लोग पहले यहां पूजा-अर्चना करते थे। बंजारी माता की मूर्ति बगुलामुखी रूप में होने से तांत्रिक पूजा के लिए विशेष मान्यता है। मूर्ति का मुख उत्तरपश्चिम दिशा में है।

मां दंतेश्वरी को 52वां शक्तिपीठ माना जाता है। मान्यता है कि यहां माता सती के दांत गिरे थे। मंदिर करीब 136 साल पुराना है। इसके अंदरूनी हिस्से में लगे स्तंभ सागौन की लकड़ी के हैं।
मां दंतेश्वरी को 52वां शक्तिपीठ माना जाता है। मान्यता है कि यहां माता सती के दांत गिरे थे। मंदिर करीब 136 साल पुराना है। इसके अंदरूनी हिस्से में लगे स्तंभ सागौन की लकड़ी के हैं।

मां दंतेश्वरी मंदिर, दंतेवाड़ा : छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में स्थित प्राचीन मंदिर में इस बार श्रद्धालुओं का प्रवेश बंद है। मां दंतेश्वरी को 52वां शक्तिपीठ माना जाता है। मान्यता है कि यहां माता सती के दांत गिरे थे। मंदिर करीब 136 साल पुराना है। इसके अंदरूनी हिस्से में लगे स्तंभ सागौन की लकड़ी के हैं। यहां विराजमान भगवान विष्णु की मूर्ति भी लकड़ी से निर्मित है। जबकि मां दंतेश्वरी की प्रतिमा संगमरमर की है।

जांजगीर जिले में मांड नदी, लात नदी और महानदी के संगम पर चंद्रपुर में मां चंद्रहासिनी देवी का मंदिर है। चंद्रमा की आकृति जैसा मुख होने के कारण इसकी प्रसिद्धि चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी मां के नाम से है।
जांजगीर जिले में मांड नदी, लात नदी और महानदी के संगम पर चंद्रपुर में मां चंद्रहासिनी देवी का मंदिर है। चंद्रमा की आकृति जैसा मुख होने के कारण इसकी प्रसिद्धि चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी मां के नाम से है।

चंद्रहासिनी देवी मंदिर, जांजगीर : प्रशासन की रोक के चलते श्रद्धालु मंदिर के बाहर से निराश ही लौट रहे हैं। हालांकि अंदर श्रद्धालुओं के लिए ज्योत जलाई गई है। जांजगीर जिले में मांड नदी, लात नदी और महानदी के संगम पर चंद्रपुर में मां चंद्रहासिनी देवी का मंदिर है। चंद्रमा की आकृति जैसा मुख होने के कारण इसकी प्रसिद्धि चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी मां के नाम से है। मान्यता के अनुसार माता सती का बायां कपोल महानदी के पास स्थित पहाड़ी में गिरा था।

मां चंद्रहासिनी मंदिर में प्रशासन की रोक के चलते श्रद्धालु मंदिर के बाहर से निराश ही लौट रहे हैं। हालांकि अंदर श्रद्धालुओं के लिए ज्योत जलाई गई है।
मां चंद्रहासिनी मंदिर में प्रशासन की रोक के चलते श्रद्धालु मंदिर के बाहर से निराश ही लौट रहे हैं। हालांकि अंदर श्रद्धालुओं के लिए ज्योत जलाई गई है।

महामाया मंदिर, रतनपुर : इस मंदिर के पट पूरी तरह से इस बार श्रद्धालुओं के लिए बंद रखे गए हैं। प्रत्येक नवरात्रि में श्रद्धालु पैदल ही मां के दर्शन के लिए मीलों का सफर तय कर पहुंचते थे। बिलासपुर-कोरबा मुख्य मार्ग पर रतनपुर में स्थित मां महामाया मंदिर देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि यहां माता का स्कंध गिरा था। इसका निर्माण राजा रत्न देव प्रथम ने 11वीं शताब्दी में कराया था।

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