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छत्‍तीसगढ़ के इस टीचर को सलाम, अंधकार में भी ज्ञान की ज्योति जला रहे दृष्टिबाधित शिक्षक

4 months ago
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रायपुर। राजधानी के एक दृष्टिबाधित शिक्षक और प्राचार्य दिव्यांग बच्चों को पढ़ाकर उन्हें सक्षम बना रहे हैं और उनके जीवन में नई रोशनी ला रहे हैं। वे एक सशक्त शिक्षक हैं। कहते हैं कि परिवार और समाज से बहुत कुछ पाया है और वही बच्चों को दे रहे हैं। शासकीय दृष्टि और श्रवण बाधितार्थ विद्यालय, मठपुरैना के प्राचार्य अमित कुमार त्रिवेदी भले दृष्टिबाधित है, लेकिन वे स्कूल के अधिकतर बच्चों को उनकी आवाज से पहचान लेते हैं।

स्कूल के दिव्यांग बच्चों को पढ़ाने के साथ जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं। दिव्यांग बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए वे स्वयं स्कूल के प्रत्येक बच्चे की काउंसिलिंग करते हैं। उनका कहना है कि स्वयं दिव्यांग होने कारण उन्हें अंदाजा हो जाता है कि बच्चों को किस तरह से सिखाया जा सकता है। जितने अच्छे ढंग से सिखाने वाला होगा, दिव्यांग बच्चा उतना ही अधिक सक्षम बन सकेगा।

प्राचार्य अमित त्रिवेदी दृष्टिबाधित बच्चों को मोबाइल एप के माध्यम से संदेश या दृश्य को आवाज में बदलना सिखाते हैं, जिससे वे चीजों की पहचान कर सकें, किसी के संदेश को पढ़ सकें। पाठ्यक्रम के साथ विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से विषयों की जानकारी देते हैं, जिससे वे आसानी से सीख सकें। इसके साथ उनका लक्ष्य होता है कि बच्चों को संगीत, खेल या अन्य गतिविधियों में पारंगत बना सकें, ताकि बच्चे भविष्य में अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

स्कूल से निकल रहे अफसर और अधिकारी

प्राचार्य अमित त्रिवेदी बताते हैं कि स्कूल से पढ़कर निकले कई छात्र विभिन्न शासकीय विभागों में उच्च पद पर पदस्थ हैं। पिछले वर्ष एक पूर्व छात्र असिस्टेंट प्रोफसर के रूप में चयनित हुए, जो सामान्य बच्चों को पढ़ा रहे हैं। लगभग आठ वर्षों से स्कूल में सेवा दे रहे प्राचार्य अमित कुमार बिना किसी छड़ी और मदद के पूरा स्कूल भी घूम लेते हैं। समय मिलने पर बच्चों के साथ खेल भी खेलते हैं।

पिता ने आंखों की रोशनी लाने का किया प्रयास

बैकुंठपुर में जन्मे प्राचार्य अमित त्रिवेदी ने बताया- मैं जब एक वर्ष का हुआ तक मुझे ग्लूकोमा हो गया। पिता किसान थे, इसके बावजूद आंखों के इलाज के लिए बहुत प्रयास किया। आंखों की रोशनी जाने के बाद मैंने रायपुर के दिव्यांग स्कूल में दाखिला लिया। इसी स्कूल में आठवीं कक्षा तक पढ़ाई की।

इसके बाद दसवीं से सामान्य बच्चों के साथ पढा़ई की। बिलासपुर से स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद इंदौर (मप्र) से स्पेशल बीएड किया। 1996 में शिक्षक के रूप में पहली पोस्टिंग जगदलपुर के दिव्यांग स्कूल में हुई, जहां 20 वर्षों तक सेवा दी। 2016 में रायपुर के बच्चों को पढ़ाया और अब स्कूल के प्राचार्य हैं।

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