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23 सालों में हाथी नहीं बने साथी, 18 योजनाओं में करोड़ों खर्च के बाद भी 6 सालों में करीब 300 लोगों की मौत…
प्रदेश में जंगली हाथियों से निपटने के लिए पिछले 23 साल में 18 योजनाओं और करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद हाथी नहीं बन पाए हमारे साथी। वन विभाग और एलीफेंट प्रोजेक्ट से जुड़े अफसर फिल्म दिखाने, हाथी के गले में घंटी बांधने से लेकर धान तक खिलाने और कर्नाटक से कुमकी हाथियों के जरिए कई प्रयोग कर चुके हैं। इसके बाद भी जनहानि रुकने का नाम नहीं ले रही है।
इस तरह की योजनाएं
वन विभाग ने जंगली हाथियों को रोकने के लिए सोलर फेंसिंग तार, गले में घंटी बांधने, कुमकी हाथियों की मदद, रेडियो से स्लोगन एवं सूचना प्रसारित करने, मुनादी कराने, लोकगीत जन जागरण अभियान, आवास योजना, रंगमंच, स्लोगन, पोस्टर -बैनर, स्थाई और अस्थाई, धार्मिक अस्था से जोड़कर लोगों को हाथियों के प्रति श्रध्दा रखने कहा गया। वहीं फिल्म हाथी मेरे हाथी, सहित विभिन्न डाक्यूमेंट दिखाकर जनजागरूकता अभियान चलाया गया। जंगल के भीतर उनके खाने के लिए फलदार वृक्ष, मशरूम और धान खिलाने का प्रयास भी किया गया। इसके बाद भी हाथियों के दल जंगल छोड़कर रिहायशी इलाकों की ओ्रर लगातार रुख कर रहे है।
पांच साल में 1.09 लाख से ज्यादा प्रकरण
हाथियों द्वारा 2016 से 2021 के बीच नुकसाए पहुंचाए जाने के 1 लाख 9511 से ज्यादा प्रकरण वन विभाग द्वारा दर्ज किए गए है। इसमें 11980 प्रकरण प्रापर्टी को नुकसान पहुंचाने और 97531 प्रकरण जनहानि और फसलों को क्षति पहुंचाने के शामिल है। इन प्रकरणों में करोड़ों रूपए का मुआवजा पीडि़तों को वितरित किया गया है।
2018 से 2020 के बीच सबसे ज्यादा मौतें
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में 2019 से 2024 के बीच हाथियों के हमलों में करीब 300 लोगों की मौत हुई है। बीते सप्ताहभर में ही कोरबा और जशपुर में हाथी के कुचलने से 7 लाेगों की मौत हो चुकी है। सबसे ज्यादा मौत 2018 से 2020 के बीच हाथियों के हमलों में 204 लोगों की मौत हो चुकी है और 97 लोग घायल हुए।
मधुमक्खियों का उपयोग भी हो सकता है कारगर
छत्तीसगढ़ में हाथी-मानव संघर्ष को कम करने के लिए अब मधुमक्खियों का उपयोग किए जाने की योजना है। मनोरा परिक्षेत्र में 50 हितग्राही, विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियों को मधुमक्खी बाड़ लगाने के लिए प्रशिक्षण और बी-बॉक्स प्रदान किए गए हैं। आईआईटी मुंबई के विशेषज्ञों द्वारा तकनीकी मार्गदर्शन भी दिया गया है। हाथी मधुमक्खियों की भिनभिनाहट और काटने के डर से उन क्षेत्रों से दूर रहते हैं। यह परियोजना सरगुजा, जशपुर और अंबिकापुर में लागू की जा रही है।
एआई से हाथी-मानव संघर्ष रोकने के प्रयास
छत्तीसगढ़ में वन विभाग ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) का उपयोग हाथी और मानव के बीच टकराव को रोकने के लिए शुरू किया है। उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व, धमतरी, गरियाबंद, धरमजयगढ़, कटघोरा, सरगुजा, जशपुर, और अंबिकापुर में घूम रहे करीब 300 हाथियों की निगरानी एक विशेष ऐप के माध्यम से की जा रही है। एआई आधारित छत्तीसगढ़ एलीफेंट ट्रैकिंग एंड अलर्ट ऐप पर हाथियों की लोकेशन ट्रैक की जाती है।
इन हरकतों से हाथी हो जाते हैं आक्रामक
World Elephant Day: सीतानदी उंदती के उपनिदेशक वरुण जैन ने बताया कि पटाखे फोड़ना, मिर्ची बम का उपयोग, पत्थर मारना, और बिजली की चपेट में आने से हाथी आक्रामक होते हैं। विस्थापित हाथी अधिक आक्रामक होते हैं। अतिक्रमण, अवैध कटाई, सड़क निर्माण, और खदानें भी हाथियों को परेशान करती हैं। हमें इन कारणों को समझकर समाधान निकालना होगा।