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छत्तीसगढ़ में पहली बार दिखा जीपीएस लगा प्रवासी पक्षी, 4000-6000 किमी की दूरी तय कर पहुंचा है व्हिंब्रेल…

8 months ago
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खैरागढ़। जीएसएम – जीपीएस (GSM -GPS) लगे प्रवासी पक्षी व्हिंब्रेल (whimbrel) को छत्तीसगढ़ में पक्षी विशेषज्ञों ने कैमरे में कैद किया है. TAG ट्रैकिंग से प्रवासी पक्षियों पर जलवायु परिवर्तन पर रिसर्च करने वालों को मदद मिलती है. 4000-6000 किमी दूरी तय करके आए पक्षी को छत्तीसगढ़ में ट्रैक किए जाने पर पक्षी प्रेमियों में खुशी का माहौल है.

व्हिम्बरेल (whimbrel) अपनी प्रभावशाली यात्रा के लिए जाना जाता है. कई महासागर और महाद्वीप पार करने में इस पक्षी का गजब का धैर्य और जबरदस्त नेविगेशन पॉवर अविश्वसनीय रूप के काम करता है. उत्तरी गोलार्द्ध से चार – छह हज़ार किलोमीटर की उड़ान इसके लिए साधारण है. अपनी विशिष्ट घुमावदार चोंच और धारीदार सिर के साथ व्हिम्बरेल (whimbrel) आसानी से शिकार कर अपना पेट भर लेता है. ये एक तटीय पक्षी है, इसलिए पानी और पानी के आसपास पाये जाने वाले सभी कीड़े-मकोड़े इसका आहार हैं.

व्हिम्बरेल (whimbrel) के संरक्षण के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं. सेटेलाइट टैगिंग और जीएसएम जीपीएस की मदद से इसके प्रवास और पैटर्न को लगातार ट्रैक किया जा रहा है. एक पक्षी पर इस तरह जीपीएस से ट्रैक करने का खर्च लगभग दस लाख या उससे ज्यादा भी हो सकता है. जीपीएस टैग के साथ हजारों मिल का सफर तय करके आए व्हिम्बरेल (whimbrel) पक्षी को स्थानीय भाषा में छोटा गोंग़ भी कहा जाता है.

जीपीएस टैग के साथ छत्तीसगढ़ में पहली बार व्हिम्बरेल (whimbrel) को रिकॉर्ड किया गया है. ऑर्निथोलॉजिट्स की टीम ने अपने कैमरे में इस पक्षी को क़ैद कर लिया. पक्षी प्रेमियों की टीम जिसमे डा हिमांशु गुप्ता, जागेश्वर वर्मा और अविनाश भोई शामिल थे. इन्होंने खैरागढ़ – बेमेतरा सीमावर्ती क्षेत्र में गिधवा परसादा वेटलैंड के पास इस पक्षी को फ़िल्माया.

विशेष बात ये है कि छत्तीसगढ़ में प्रवासी पक्षियों के अध्यन में यह एक महत्वपूर्ण कड़ी निभायेगा, क्योंकि पहली बार जीपीएस लगे पक्षी को ट्रैक किया गया है. प्रवासी पक्षियों के आने-जाने के रास्ते में छत्तीसगढ़ महत्वपूर्ण स्थान रखता है. व्हिम्बरेल का मिलना इस बात को प्रमाणित करता है.

इस व्हिम्बरेल (whimbrel) की कलर टैगिंग येलो होने के कारण इसे उत्तरी गोलार्ध के देशों से आने का प्रमाण मिलता है. इस पर लगे GPS GSM सौर ऊर्जा से चलने वाला (solar based platform transmitter terminal) ट्रैकिंग डिवाइस है. TAG ट्रैकिंग से प्रवासी पक्षियों पर जलवायु परिवर्तन पर रिसर्च करने वालों को मदद मिलती है. 4000 से 6000 किलोमीटर दूरी तय करके आए पक्षी को छत्तीसगढ़ में ट्रैक किए जाने पर पक्षी प्रेमियों में खुशी का माहौल है.

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