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हसदेव पर सिंहदेव बोले, सवाल मेरे चाहने का नहीं, ग्रामीणों के सांविधानिक हित का है ।
रायपुर, 08 जून 2022/ कई महीनों से हसदेव अरण्य को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे आदिवासियों के लिए प्रदेश की राजनीति अब मुखर हुई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कल कहा, टीएस सिंहदेव नहीं चाहते तो वहां पेड़ क्या एक डंगाल भी नहीं कटेगी। अब स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा है, सवाल उनके चाहने का नहीं, ग्रामीणों के संविधानिक हित का है।
पंचायत, ग्रामीण विकास और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने बुधवार को सोशल मीडिया पर लिखा, भूपेश भाई को हसदेव आंदोलन पर बयान के लिए आभार। लगभग 100 दिन से लगातार आंदोलनरत ग्रामीणों की बात पर उन्होने उनके पक्ष में सहमति व्यक्त की है। प्रश्न आंदोलन कर रहे ग्रामीणजनों के व्यापक एवं सांविधानिक हित का है और उनके साथ खड़े होने पर भूपेश बघेल भाई को पुनः धन्यवाद। इससे पहले उन्होंने कहा था, सवाल उनके चाहने न चाहने का नहीं है। वे व्यक्तिगत रूप से चाहें कि वहां पेड़ न कटे और जिनकी जमीन जा रही है वे अगर चाहते हैं कि वहां खदान खुले तो उनकी बात सुनी जानी चाहिए। मंगलवार को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था, बाबा साहब (टीएस सिंहदेव) उस क्षेत्र के विधायक हैं। अगर वे नहीं चाहते तो वहां पेड़ क्या एक डंगाल भी नहीं कटेगा। मुख्यमंत्री ने कहा, मैं फिर दोहरा रहा हूं, टीएस सिंहदेव नहीं चाहेंगे तो वहां एक डंगाल भी नहीं कटेगा।
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने बुधवार सुबह यह पोस्ट डाली।
सोमवार को हसदेव अरण्य के हरिहरपुर पहुंचे थे सिंहदेव
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव सोमवार को हसदेव अरण्य क्षेत्र के खदान प्रभावित गांव हरिहरपुर पहुंचे थे। वहां कई गांवों के लोग खदानों के विरोध में धरना दे रहे हैं। सिंहदेव ने ग्रामीणों के आंदोलन से एकजुटता दिखाई। उन्होंने कहा, अगर गांव के लोग एक राय रहे तो उनकी जमीन कोई नहीं छीन सकता। सिंहदेव ने यह भी कहा, कोयले के लिए इतने समृद्ध जंगलों का विनाश नहीं होना चाहिए।
हसदेव अरण्य को लेकर यह हंगामा क्यों मचा है
हसदेव अरण्य छत्तीसगढ़ के कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर जिले के बीच में स्थित एक समृद्ध जंगल है। करीब एक लाख 70 हजार हेक्टेयर में फैला यह जंगल अपनी जैव विविधता के लिए जाना जाता है। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की साल 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक इस क्षेत्र में 10 हजार आदिवासी हैं। हाथी तेंदुआ, भालू, लकड़बग्घा जैसे जीव, 82 तरह के पक्षी, दुर्लभ प्रजाति की तितलियां और 167 प्रकार की वनस्पतियां पाई गई है।
इसी इलाके में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को चार कोयला खदानें आवंटित है। एक में खनन 2012 से चल रहा है। इसका विस्तार होना है। वहीं एक को अंतिम वन स्वीकृति मिल चुकी है। इसके लिए 841 हेक्टेयर जंगल को काटा जाना है। वहीं दो गांवों को विस्थापित भी किया जाना है। स्थानीय ग्रामीण इसका विरोध कर रहे हैं। 26 अप्रैल की रात प्रशासन ने चुपके से सैकड़ों पेड़ कटवा दिए। उसके बाद आंदोलन पूरे प्रदेश में फैल गया। अभी प्रशासन ने फिर पेड़ काटे हैं। विरोध बढ़ता जा रहा है। सोमवार को स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव भी यहां पहुंचे थे।