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आज शाम खत्म हो जाएगा चुनावी शोर, 20 दिनों से जारी प्रचार अभियान थमेगा

3 years ago
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रायपुर/खैरागढ़, 10 अप्रैल 2022/    खैरागढ़ विधानसभा के गांवों-शहरों में पिछले 20 दिनों से चल रही चुनाव प्रचार की आंधी रविवार शाम थम जाएगी। चुनाव प्रचार के लिए खैरागढ़ विधानसभा के चार प्रमुख मोर्चे हैं। कांग्रेस और भाजपा ने अपने महारथी नेताओं को इन मोर्चों पर 15 दिनों से तैनात कर रखा था। प्रचार अभियान के सभी दांव-पेंच इन्हीं महारथियों के नेतृत्व में खेले गए हैं। अब परिणाम बताएंगे कि किस मोर्चे ने जीत में क्या भूमिका निभाई।

खैरागढ़ विधानसभा का क्षेत्र भौगोलिक रूप से दो प्रमुख हिस्सों में बंटा है। पहला मैदानी इलाका है जिसका विस्तार खैरागढ़, छुईखदान और गंडई के अधिकांश हिस्सों में है। दूसरा हिस्सा पहाड़ी है जो साल्हेवारा क्षेत्र में पड़ता है। सामाजिक रूप से इसके चार प्रमुख क्षेत्र हैं। पहला खैरागढ़ से जालबांधा तक का इलाका। इस इलाके में लोधी समाज की बहुलता है। खैरागढ़ से छुईखदान तक एक मिश्रित आबादी वाला इलाका है। वहीं छुई खदान से गंडई तक सतनामी समाज की आबादी अधिक है। साल्हेवारा के वन क्षेत्र में आदिवासी समाज की बड़ी आबादी रहती है। राजनीतिक दलों का पूरा प्रचार अभियान इसी जातीय-सामाजिक ध्रुवीकरण के गणित पर केंद्रित था। सत्ताधारी कांग्रेस ने इसमें एक कदम आगे बढ़कर किसान को एक समाज के रूप में ले आई है। वहीं भाजपा “राम नाम’ के सहारे लोगों को एकजुट करने की कोशिश में जुटी रही।

कांग्रेस के इन नेताओं से संभाला क्षेत्र

खैरागढ़ – जयसिंह अग्रवाल, देवेंद्र यादव

छुईखदान – गिरीश देवांगन

गंडई – डॉ. प्रेमसाय सिंह

साल्हेवारा – कवासी लखमा, विक्रम मंडावी, बृहस्पत सिंह, डॉ. के.के.ध्रुव और विनोद तिवारी

एक विशेष मोर्चा – गुरु रुद्र कुमार और डॉ. शिव डहरिया को खैरागढ़, छुईखदान से लेकर गंडई तक के सतनामी बहुल इलाकों की विशेष जिम्मेदारी मिली थी।

भाजपा ने इन नेताओं को दी थी जिम्मेदारी

खैरागढ़ शहर – बृजमोहन अग्रवाल, केदारनाथ गुप्ता

खैरागढ़ ग्रामीण – राजेश मूणत, नारायण चंदेल, अनुराग सिंहदेव

छुईखदान – धरमलाल कौशिक, भूपेंद्र सवन्नी, मोतीराम चंद्रवंशी

गंडई – शिवरतन शर्मा, संजय श्रीवास्तव

साल्हेवारा – केदार कश्यप, किरण देव और विजय शर्मा

कांग्रेस के हर विधायक को चार-पांच बूथ का जिम्मा

कांग्रेस ने यहां अपने कई और मंत्रियों-विधायकों को प्रचार में लगा रखा था। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने राजपरिवार के समर्थकों पर फोकस किया था। उन्होंने खैरागढ़ और साल्हेवारा क्षेत्रों में जोरदार दौरा किया। वहीं अमरजीत भगत प्रभारी मंत्री होने की वजह से लगातार सक्रिय रहे। बीमार हो गए। दो दिन बाद फिर मैदान में पहुंचे। गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू, कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने वॉर रूम में मोर्चा संभाला। कांग्रेस के 70 में से कम से कम 50 विधायक प्रचार में लगे रहे। प्रत्येक विधायक को चार से पांच बूथ पर प्रचार और प्रबंधन का जिम्मा दिया गया था।

राजा ही दे पाए हैं जातीय गणित को मात

खैरागढ़़ विधानसभा चुनाव के परिणाम बताते हैं कि यहां राजा का दबदबा रहा है। सामाजिक बहुलता वाले लोधी वोट बैंक के गणित को राजा की मात दे पाया है। छत्तीसगढ़ बनने के बाद 2003 में पहली बार चुनाव हुआ था। उस समय कांग्रेस ने देवव्रत सिंह को और भाजपा ने सिद्धार्थ सिंह को खड़ा किया। देवव्रत ने वह चुनाव 17 हजार 907 मतों के अंतर से जीता। 2007 में उपचुनाव हुआ तो भाजपा के काेमल जंघेल ने देवव्रत सिंह की तत्कालीन पत्नी पद्मा सिंह को हरा दिया। 2008 में कांग्रेस ने राजपरिवार को टिकट न देकर लोधी समाज के ही मोतीलाल जंघेल को उतारा। वह चुनाव कोमल ने 19 हजार से अधिक वोटों से जीता। 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने गिरवर जंघेल को उतारा। उन्होंने भाजपा के कोमल जंघेल को 2100 वोटों से हराया।

2018 में लोधी वोटों के बंटवारे से हारी थी भाजपा

2018 के चुनाव में कांग्रेस ने गिरवर जंघेल को उतारा। देवव्रत सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर जनता कांग्रेस से चुनाव लड़ा और कड़े मुकाबले में 870 मतों से कोमल जंघेल को हरा दिया। दोनों को करीब 36-36% वोट मिले। वहीं कांग्रेस को केवल 19% यानी 31 हजार वोट ही मिल पाए। भाजपा का कहना है कि लोधी वोटों के बंटवारे की वजह से वह चुनाव हार गई। आंकड़ों के मुताबिक गंडई क्षेत्र से देवव्रत सिंह को कुछ वोटों की बढ़त मिल गई जो अंतत: जीत में बदली। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है, यह क्षेत्र हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रहा है। यह चुनाव फिर साबित करेगा कि यहां कि जनता कांग्रेस पर ही भरोसा करती है।

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