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मदनवाड़ा कांड की रिपोर्ट पर कैबिनेट में विवाद:न्यायिक आयोग ने तत्कालीन रेंज पुलिस अफसर पर उठाए सवाल

3 years ago
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Madanwada Case; Controversy In Bhupesh Baghel Cabinet On judicial  commission Report | न्यायिक आयोग ने तत्कालीन रेंज पुलिस अफसर को घेरा, एक  वरिष्ठ मंत्री ने कहा - यह गलत परंपरा ...

रायपुर, 19 फरवरी 2022/   करीब 12 साल पहले राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा जंगल में हुए नक्सली हमले पर न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट कैबिनेट में पेश हो गई है। जस्टिस शंभुनाथ श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाले आयोग ने इस रिपोर्ट में घटना में बड़े नुकसान के लिए रेंज के एक तत्कालीन बड़े पुलिस अधिकारी पर सवाल उठाए हैं। इसे लेकर बैठक में थोड़ा विवाद हो गया। एक वरिष्ठ मंत्री ने इस पर आपत्ति की है।

बताया जा रहा है, मदनवाड़ा कांड की रिपोर्ट उस वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को बड़ी संख्या में पुलिस बलों के हताहत होने का बड़ा जिम्मेदार बता रही है। जबकि उस रिपोर्ट में आरोपी बनाए गए अधिकारी का ही बयान नहीं है। बैठक के दौरान एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा, किसी घटना के लिए वहां मौजूद सबसे बड़े अफसर को दोषी बता देना गलत परंपरा होगी। ऐसे तो किसी दिन ऐसी किसी घटना के लिए डीजीपी को भी दोषी ठहरा दिया जाएगा।

हांलाकि कैबिनेट में बहुमत ने उन मंत्री के बात को अनसुना कर दिया। उसके बाद इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया। बताया जा रहा है, अब यह रिपोर्ट विधानसभा के बजट सत्र में पेश की जाएगी। इसके साथ एक्शन टेकेन रिपोर्ट भी होगी। इसमें सरकार बताएगी कि इस रिपोर्ट पर क्या किया गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सितम्बर 2019 में मदनवाड़ा कांड की जांच के लिए न्यायिक जांच आयोग की घोषणा की थी। जनवरी 2020 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज न्यायमूर्ति शंभुनाथ श्रीवास्तव को जांच का जिम्मा सौंप दिया गया। करीब 18 दिन पहले उन्होंने अपनी रिपोर्ट मुख्य सचिव को सौंपी।

क्या हुआ था मदनवाड़ा में

12 जुलाई 2009 की सुबह राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा गांव के पास नक्सलियों ने घात लगाकर पुलिस टीम पर बड़ा हमला किया। इसमें तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे सहित 29 पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। इनमें 25 जवान कोरकोटि के जंगल में, 2 मदनवाड़ा में और शहीद साथियों का शव वापस लाने की कवायद में जवानों की शहादत हुई थी। यह पहला मौका था, जब नक्सलियों के हमले में किसी जिले के एसपी की शहादत हुई हो।

इन बिंदुओं पर केंद्रित थी यह जांच

  • यह घटना किन परिस्थितियों में हुई थी।
  • क्या घटना को घटित होने से बचाया जा सकता था।
  • क्या सुरक्षा की निर्धारित प्रक्रियाओं और निर्देशों का पालन किया गया था।
  • किन परिस्थितियों में एसपी और अन्य सुरक्षाबलों को उस अभियान में भेजा गया।
  • एसपी और जवानों के लिए क्या अतिरिक्त बल उपलब्ध कराया गयाए अगर हां तो स्पष्ट करना है।
  • मुठभेड़ में माओवादियों को हुए नुकसान और उनके मरने और घायल होने की जांच।
  • सुरक्षाबलों के जवान किन परिस्थितियों में मरे अथवा घायल हुए।
  • घटना से पहले, उसके दौरान और बाद के तथ्य जो उससे संबंधित हों।
  • क्या राज्य पुलिस और केंद्रीय बलों के बीच समुचित समन्वय रहा है।

ताड़मेटला कांड के पीड़ितों को मुआवजा देगी सरकार

कैबिनेट में शुक्रवार को ताड़मेटला कांड की रिपोर्ट भी पेश हुई। आयोग ने तीन गांवों में आदिवासियों के 50 घरों में आगजनी की बात स्वीकारी है। इसमें किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया। जबकि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की चूक बताई गई है। जबकि तत्कालीन मीडिया रिपोर्ट्स में 250 से 350 घरों तक के जलने की बात थी। सरकार ने जिला प्रशासन को पीड़ितों की पहचान करने का जिम्मा देने का फैसला किया है। पीड़ितों की पहचान होने के बाद उन्हें मुआवजा दिया जाएगा।

क्या हुआ था ताड़मेटला में

सुकमा जिले के दोरनापाल-जगरगुंडा इलाके में स्थित ग्राम ताड़मेटला, मोरपल्ली और तिम्मापुर गांव में 11 से 16 मार्च 2011 के बीच आदिवासियों के मकानों को आग लगा दी गई थी। सुरक्षा बलों का दावा था, आगजनी नक्सलियों ने की। ग्रामीणों का कहना था यह आग सुरक्षा बलों ने लगाई है। 26 मार्च को प्रभावित गांवों में जाने के लिए निकले स्वामी अग्निवेश के काफिला पर सुकमा से 35 किलोमीटर आगे दोरनापाल में हमला हुआ। बाद में रिटायर्ड जज टीपी शर्मा की अध्यक्षता में आयोग ने इसकी जांच पूरी की है।

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