• breaking
  • Chhattisgarh
  • भोरमदेव में शिवलिंग पर 24 किलो चांदी : बसंत पंचमी पर विधि-विधान से बदला गया महादेव का कवच, क्षरण से बचाने के लिए बनवाया है

भोरमदेव में शिवलिंग पर 24 किलो चांदी : बसंत पंचमी पर विधि-विधान से बदला गया महादेव का कवच, क्षरण से बचाने के लिए बनवाया है

3 years ago
148
भोरमदेव मंदिर के गर्भगृह में अब इस रूप में होंगे भगवान शिव के शृंगार दर्शन। - Dainik Bhaskar

कवर्धा/रायपुर, 05 फरवरी 2022/  छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक भोरमदेव मंदिर में शिवलिंग पर 24 किलोग्राम विशुद्ध चांदी का नया कवच चढ़ाया गया है। प्राचीन शिवलिंग को क्षरण से बचाने के लिए यह उपाय किया गया है। बसंत पंचमी को वैदिक पूजा-अर्चना और अभिषेक के बाद शिवलिंग पर चढ़ा पुराना कवच हटाकर नया कवच चढ़ाया गया।

भोरमदेव मंदिर प्रबंधन ने बताया, कई तरह के जल चढ़ाने, रुद्राभिषेक आदि लगातार चलते रहने और श्रद्धालुओं के स्पर्श से प्राचीन शिवलिंग का क्षरण हो रहा था। उसके लिए कुछ वर्ष पूर्व चांदी का एक कवच बनाया गया था। वह कवच जीर्णशीर्ण हो गया। कई जगह से टूट गया था। ऐसे में जनसहयोग से नये कवच शिवलिंग को सजाने का निर्णय लिया गया था। इसके लिए जयपुर के कारीगरों को ऑर्डर दिया गया।  मंदिर में अफसरों-जनप्रतिनिधियों ने पूजा-अभिषेक किया।

यह कवच 24 किलोग्राम शुद्ध चांदी से बनाया गया है। यानी इसमें कोई दूसरी धातु नहीं मिलाई गई है। इसकी कारीगरी पर ही ढाई लाख रुपए का भुगतान हुआ है। शनिवार काे पंडरिया विधायक ममता चंद्राकर, कवर्धा नगर पालिका के अध्यक्ष ऋषि शर्मा और कबीरधाम कलेक्टर रमेश कुमार शर्मा भोरमदेव मंदिर पहुंचे। यहां पुजारियों और पुरोहितों ने वैदिक परंपरा से महादेव की पूजा-अभिषेक कर पुराना कवच हटाया। उसके बाद शिवलिंग पर नया कवच लगा दिया गया। बसंत पंचमी पर भगवान महादेव के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचे हैं। इस शिवलिंग कवच को बनाने में करीब 5-6 महीने का समय लगा है।

आज से गर्भगृह के लाइव दर्शन

भोरमदेव मंदिर प्रबंधन ने शनिवार से गर्भगृह के लाइव दर्शन की सुविधा शुरू की है। इसके लिए एक यू-ट्यूब चैनल बनाया गया है। इस चैनल से सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक के पूजन-शृंगार और आरती की गतिविधियां लाइव देखी जा सकेंगी।

11वीं शताब्दी का मंदिर, खजुराहो जैसा शिल्प

कवर्धा जिला मुख्यालय से करीब 18 किमी दूर चौरा गांव में ऐतिहासिक भोरमदेव मंदिर स्थित है। 11वीं शताब्दी में बना यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर खजुराहो जैसा काम शिल्प देखने को मिलता है। इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो भी कहा जाता है। यह मंदिर नागर शैली का अनुपम नमूना है।

एक पांच फीट ऊंचे चबूतरे पर बने इस मंदिर में 3 ओर से प्रवेश द्वार है। तीनों प्रवेश द्वार से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जाता है। मंडप की लंबाई 60 फीट और चौड़ाई 40 फीट है। मंडप के बीच 4 स्तंभ हैं और किनारे की ओर 12 स्तंभ हैं। इन स्तंभों ने मंडप की छत को संभाल रखा है। इन स्तंभों पर सुंदर कलाकृतियां है।

Social Share

Advertisement