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छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने जिले के प्रभारी मंत्रियों को बनाया था DMF अध्यक्ष, केंद्र का आदेश – कलेक्टर ही हो सकता है अध्यक्ष
रायपुर 04 जून 2021/ भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और कांग्रेस नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार के बीच एक और विषय पर हितों का टकराव हो गया है। यह विषय है जिला खनिज निधि न्यास (DMF)। कांग्रेस सरकार ने दो साल पहले नियमों में संशोधन कर जिलों के प्रभारी मंत्री को DMF का अध्यक्ष बना दिया था। अब केंद्र सरकार ने एक पत्र लिखकर कहा है कि DMF का गठन केंद्रीय कानून से हुआ है। ऐसे में केंद्र सरकार की ओर से तय कलेक्टर ही इसका अध्यक्ष हो सकता है।
केन्द्रीय खान मंत्रालय के 23 अप्रैल 2021 को जारी आदेश के मुताबिक जिला खनिज न्यास (DMF) के गठन आदि के नियमों को संशोधित करके यह प्रावधान किया गया है कि इसके अध्यक्ष कलेक्टर होंगे। विधायक व सांसदगण इसकी शासी परिषद में सदस्य होंगे। केंद्र सरकार के इस आदेश पर छत्तीसगढ़ सरकार भड़की हुई है। वन मंत्री मोहम्मद अकबर का कहना है, केन्द्र सरकार का यह आदेश समझ से परे है। DMF का गठन करने के लिए नियम बनाने का पूर्ण अधिकार केन्द्रीय अधिनियम द्वारा राज्य सरकारों को दिया गया है। इसके तहत छत्तीसगढ़ शासन ने जिले के प्रभारी मंत्री को DMF का अध्यक्ष नियुक्त करने का प्रावधान किया था। मोहम्मद अकबर ने बताया, धारा 9-बी की उपधारा 3 के परन्तुक में केन्द्र सरकार को जो शक्तियां प्रदान की गई है वह इस बारे में है कि DMF द्वारा निधि की संरचना और उसके उपयोग के संबंध राज्य सरकारों को निर्देश जारी करे। इसका यह मतलब नहीं है कि वह DMF के गठन के बारे में निर्देश जारी करे। मोहम्मद अकबर ने कहा, इस आदेश के बाद भी विधायक DMF के सदस्य बने रहेंगे। खनन प्रभावित क्षेत्रों में वहां की जरूरत के मुताबिक विकास के लिए यह फंड बना था।
क्याें बना था यह DMF
केंद्र सरकार के एक कानून से खनन प्रभावित जिलाें में जिला खनिज न्यास का गठन हुआ था। मकसद था खनन से प्रभावित क्षेत्रों के विकास और सुविधाओं की बहाली के लिए अलग से फंड की व्यवस्था करना। छत्तीसगढ़ में 22 दिसम्बर 2015 को इसे अधिसूचित किया गया। यहां सभी 28 जिलों में DMF का गठन हुआ है। इसके तहत जिले की खदानों की रायल्टी का 10 से 30 प्रतिशत हिस्सा इस फंड में आना था। इसको खर्च करने का अधिकार एक शाषी परिषद को था।
ऐसे बदली व्यवस्था, जिसपर अब टकराव
2015 के नियम के मुताबिक जिला कलेक्टर पदेन इस न्यास का अध्यक्ष था। वह तीन विधायकों को भी नामित कर सकता था। उद्योगपतियों, किसानों और विभिन्न विभागों के अधिकारी इसकी शाषी परिषद में सदस्य थे। विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस ने कलेक्टरों पर मनमानी का आरोप लगाया। कहा गया, ग्रामीण क्षेत्रों की अनदेखी कर इस फंड से गैर जरूरी सामान खरीदा जा रहा है, निर्माण हो रहा है। कांग्रेस सरकार आने पर फरवरी 2019 में जिलों के प्रभारी मंत्रियों को अध्यक्ष बना दिया गया। कलेक्टर सचिव बने और सभी विधायकों को पदेन सदस्य बना दिया गया। बाद में जिला पंचायत अध्यक्ष भी इसके सदस्य बना दिए गए। ऐसी खदानों से आसपास के पर्यावरण और सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ता है। डीएफएफ फंड से उसकी भी भरपाई की व्यवस्था की गई है।
खनिज रायल्टी का एक तिहाई आता है
तय नियम के मुताबिक खदानों की रायल्टी का एक हिस्सा इस फंड में आता है। यह अलग-अलग क्षेत्र और खनिज के मान से 10 से 30 प्रतिशत तक है। एक जनवरी 2020 से 31 दिसम्बर 2021 तक इस फंड में 1352 करोड़ रुपए का अंशदान मिला था। 2016 से 2020 तक 6199 करोड़ रुपए की राशि इस फंड में आ चुकी थी। इस बड़ी धनराशि को खर्च करने का निर्विवाद अधिकार भी विवादों की जड़ में है।