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छत्तीसगढ़ में जलवायु परिवर्तन : साल 2070 तक औसत तापमान में 2.9 डिग्री की होगी बढ़ोतरी, गर्मी ज्यादा और बारिश हो जाएगी कम

2 years ago
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साल 2070 तक औसत तापमान में 2.9 डिग्री की होगी बढ़ोतरी, गर्मी ज्यादा और बारिश हो जाएगी कम | Climate change in Chhattisgarh, By the year 2070, the average temperature will increase

रायपुर, 27 अप्रैल 2023/  आने वाले समय में छत्तीसगढ़ भी जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से अछूता नहीं रहेगा। मौसम वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2070 तक यहां औसत तापमान में 2.9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी। वार्षिक वर्षा में लगभग 4.5 प्रतिशत की कमी होगी और फसल उत्पादन में लगभग 10 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की जाएगी, जो मानव और अन्य जीवों के अस्तित्व के लिए एक बड़ी चुनौती साबित होगी।

कृषि मौसम विभाग के डॉ. केएल नंदेहा ने कहा कि दंतेवाड़ा, बस्तर, बीजापुर, जांजगीर, जशपुर, महासमुंद, रायगढ़, सरगुजा, नारायणपुर, बलरामपुर एवं कोण्डागांव जिलों में वार्षिक अधिकतम तापमान में वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं 5 जिलों जशपुर, कोरिया, सरगुजा, बलरामपुर और सूरजपुर में वार्षिक न्यूनतम तापमान में वृद्धि दर्ज की गई है। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक छत्तीसगढ़ के वार्षिक अधिकतम तापमान में 0.6 डिग्री सेंटीग्रेड और वार्षिक न्यूनतम तापमान में 1.3 डिग्री सेंटीग्रेड की वृद्धि हो जाएगी। आगामी 40-50 वर्षों में रायगढ़, बिलासपुर एवं कोरबा जिलों में अधिकतम तापमान में सर्वाधिक वृद्धि होगी, जबकि जशपुर, गरियाबंद एवं कोण्डागांव जिलों में वार्षिक तापमान में कमी दर्ज की जाएगी।

इसी प्रकार रायगढ़, मुंगेली एवं रायपुर जिलों में वार्षिक न्यूनतम तापमान में सर्वाधिक वृद्धि तथा बस्तर, जशपुर और कोंडागांव जिलों में वार्षिक न्यूनतम तापमान में कमी दर्ज की जाएगी। कोरबा, बिलासपुर एवं दुर्ग जिले फसल उत्पादन की दृष्टि से सर्वाधिक प्रभावित होंगे। जलवायु परिवर्तन के कारण पछले कुछ वर्षों में मौसम की चरम प्रतिकूल परिस्थितियों गर्मी, सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि जैसी घटनाओं में काफी बढ़ोतरी हुई है। यह मानव स्वास्थ्य और फसलों की पैदावार के लिए एक गंभीर चुनौती बन कर उभरा है। औद्योगिक क्रान्ति की शुरुआत के बाद से वायुमंडल का तापमान 1.1 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ चुका है। अगर यही रफ्तार रही, तो आने वाले दो दशकों में औसत तापमान 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड और बढ़ जाएगा।

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि मौसम विज्ञान विभाग ने ‘‘छत्तीसगढ़ राज्य में जलवायु परिवर्तन की समस्याएं चरम मौसम घटनाओं के लिए अनुकूलन और शमन रणनीतियां’’ विषय पर संगोष्ठि में मौसम वैज्ञानिकों ने ये आशंकाएं जताईं। उन्होंने जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने के गंभीर प्रयास करने पर जोर दिया।

इन्होंने किया मंथन

मुख्य अतिथि कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल थे। विशिष्ट अतिथि विवि के प्रबंध मण्डल सदस्य आनंद मिश्रा, डॉ. एसके बल, परियोजना समन्वयक, अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (कृषि मौसम विज्ञान), हैदराबाद तथा छत्तीसगढ़ में जलवायु परिवर्तन प्रकोष्ठ के नोडल अधिकारी अरूण पाण्डेय भी उपस्थित थे।

नीम-पीपल जैसे चौबीसों घंटे ऑक्सीजन देने वाले पौधों लगाने होंगे

कुलपति डॉ चंदेल ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग रोकने के लिए नीम, पीपल जैसे चौबीसों घंटे ऑक्सीजन देने वाले पौधों का रोपण करना होगा। इसी तरह प्लास्टिक वेस्ट मटेरियल का उपयोग सड़क निर्माण में किया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें ऐसी प्रौद्योगिकी का विकास करना होगा, जिससे जलवायु परिवर्तन का मानव जीवन और धरती के अस्तित्व पर अधिक प्रभाव ना पडे़। इसके लिए विभिन्न फसलों की ऐसी किस्मों का विकास करना होगा, जो जलवायु परिवर्तन का सामना करने सक्षम हों। मिलेट्स अर्थात मोटे अनाज जलवायु परिवर्तन से कम प्रभावित होते हैं। इनके उत्पादन को बढ़ावा देना होगा। जैविक खेती को बढ़ावा देना होगा और ऐसी फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करना होगा, जो कार्बन का कम उत्सर्जन करती है।

डॉ. बल ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का मुद्दा पिछले 30 वर्षां से काफी चर्चा में है। इन वर्षां में धरती के औसत तापमान में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है। सूखी और गर्म हवाओं से फसलों की पैदावार प्रभावित हुई है। कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1970 के पूर्व कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन में वार्षिक वृद्धि की दर 1.32 पीपीएम थी, जो 1970 के बाद बढ़कर 3.4 पीपीएम हो गई।

थर्मल पावर प्लांट जिम्मेदार

प्रबंध मंडल सदस्य आनंद मिश्रा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा मिलना है। बिजली के आपूर्ति के लिए लगाए जाने वाले थर्मल पॉवर प्लांट जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार हैं। इन थर्मल पावर प्लान्ट में प्रति दिन हजारों टन कोयला और हजारो लीटर पानी लगता है। कोयला खनन के लिए प्रति वर्ष हजारों हेक्टेयर जंगल काट दिए जाते हैं। नदियों के लाखों लीटर पानी उपयोग होता है। उपभोक्तावादी संस्कृति के चलते लाखों वर्षां में निर्मित प्राकृतिक संसाधनों का हम आज ही दोहन कर लेना चाहते हैं। हमें सोचना चाहिए कि हम आने वाली पीढ़ी के लिए क्या छोड़कर जाएंगे?

जंगलों की कटाई रोकनी होगी

छत्तीसगढ़ में जलवायु परिवर्तन प्रकोष्ठ के नोडल अधिकारी अरूण पाण्डेय ने कहा कि जंगलों घटने से रोकने के लिए जंगलों की उत्पादकता बढ़ानी होगी। जंगलों में रहने वाले वनवासियों को जगरूक करना होगा। उनमें जंगलों के मालिक होने की भवना विकसित करनी होगी। छत्तीसगढ़ में 16 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र में सामुदायिक वन संसाधन विकास कार्यक्रम शुरू किया गया है। जंगलों में पेड़ों के बीच औषधीय एवं कंदीय फसलों की इन्टरक्रॉपिंग की जा रही है।

 

 

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