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राज्यसभा से LIVE : किसानों के मुद्दे पर मोदी बोले- गालियां मेरे खाते में जाने दो, अच्छा आपके खाते में और बुरा मेरे खाते में

4 years ago
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि राष्ट्रपति के भाषण की ताकत इतनी थी, कई लोग न सुनने के बावजूद बहुत लोग बोल पाए। इससे भाषण का मूल्य आंका जा सकता है। - Dainik Bhaskar

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि राष्ट्रपति के भाषण की ताकत इतनी थी, कई लोग न सुनने के बावजूद बहुत लोग बोल पाए। इससे भाषण का मूल्य आंका जा सकता है।

 

 

 

 

 

नई दिल्ली, 08 फरवरी 2021/   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर जवाब दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि हम कोई स्टैटिक अवस्था में जीने वाले लोग थोड़े हैं। अच्छे सुझाव आते हैं तो अच्छे सुधार भी होते हैं। आइए, देश को आगे ले जाने के लिए मिलकर काम करें। गालियां मेरे खाते में जाने दो। अच्छा आपके खाते में, बुरा मेरे खाते में। आओ मिलकर अच्छा करें।

किसान संगठनों से अपील- आंदोलन खत्म कर मिलकर चर्चा करते हैं
उन्होंने कहा कि आंदोलन करने वाले लोगों से अपील है कि वहां बूढ़े लोग भी बैठे हैं, आंदोलन खत्म करें, मिलकर चर्चा करते हैं। खेती को खुशहाल बनाने के लिए ये समय है, जिसे गंवाना नहीं है। पक्ष-विपक्ष हो, इन सुधारों को हमें मौका देना चाहिए। ये भी देखना होगा कि इनसे ये लाभ होता है या नहीं। मंडियां ज्यादा आधुनिक हों। MSP था, है और रहेगा।

उन्होंने कहा कि सदन की पवित्रता को समझें। जिन 80 करोड़ लोगों को सस्ते में राशन मिलता है, वो जारी रहेगा। आबादी बढ़ रही है, जमीन के टुकड़े छोटे हो रहे हैं, हमें कुछ ऐसा करना होगा कि किसानी पर बोझ कम हों और किसान परिवार के लिए रोजगार के अवसर बढ़ें। हम अगर देर कर देंगे। हम अपने ही राजनीतिक समीकरणों के फंसे रहेंगे तो कुछ नहीं हो पाएगा।

राष्ट्रपति का उद्बोधन आत्मनिर्भर भारत की राह दिखाने वाला : मोदी
उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया चुनौतियों से जूझ रही है। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि इन सबसे गुजरना होगा। इस दशक के प्रारंभ में ही हमारे राष्ट्रपति ने संयुक्त सदन में जो उद्बोधन दिया, जो नया आत्मविश्वास पैदा करने वाला था। यह उद्बोधन आत्मनिर्भर भारत की राह दिखाने वाला और इस दशक के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाला था।

उन्होंने कहा कि राज्यसभा में करीब-करीब 13-14 घंटे तक सांसदों ने अपने बहुमूल्य और कई पहलुओं पर विचार रखे। सबका आभार व्यक्त करता हूं। अच्छा होता कि राष्ट्रपति का भाषण सुनने के लिए भी सभी लोग होते, तो लोकतंत्र की गरिमा और बढ़ जाती। राष्ट्रपति के भाषण की ताकत इतनी थी, कई लोग न सुनने के बावजूद बहुत लोग बोल पाए। इससे भाषण का मूल्य आंका जा सकता है।

कविता के जरिए विपक्ष पर निशाना
उन्होंने कहा कि हम सबके लिए ये भी एक अवसर है कि आजादी के 75वें साल में प्रवेश कर रहे हैं। यह पर्व कुछ कर गुजरने का होना चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि आजादी के 100वें साल यानी 2047 में हम कहां होंगे। आज दुनिया की निगाह हम पर है। जब मैं अवसरों की चर्चा कर रहा हूं, तब मैथिलीशरण गुप्त की कविता कहना चाहूंगा- अवसर तेरे लिए खड़ा है, फिर भी तू चुपचाप पड़ा है। तेरा कर्मक्षेत्र बड़ा है, पल-पल है अनमोल, अरे भारत उठ, आंखें खोल।

उन्होंने कहा कि मैं सोच रहा था, 21वीं सदी में वो क्या लिखते- अवसर तेरे लिए खड़ा है, तू आत्मविश्वास से भरा पड़ा है, हर बाधा, हर बंदिश को तोड़, अरे भारत, आत्मनिर्भरता के पथ पर दौड़।

दुनिया हमारे प्रयासों की दाद दे रही है
उन्होंने कहा कि कोरोना के दौरान कोई किसी की मदद कर सके, ये मुश्किल हो गया। एक देश दूसरे देश को, एक प्रदेश दूसरे प्रदेश को, एक परिवार दूसरे परिवार की मदद नहीं कर पा रहा था। करोड़ों लोगों के मर जाने की बातें कहीं जा रही थीं। एक अनजाना दुश्मन क्या कर सकता था, इसकी उम्मीद नहीं थी। इसे कैसे डील कर सकते हैं, ये भी पता नहीं था। हमें रास्ते खोजने थे, बनाने थे, लोगों को बचाना था। उन्होंने कहा कि हमें ईश्वर ने जो बुद्धि सामर्थ्य दिया, उससे लोगों को बचाने में सफल हुए। दुनिया इसकी दाद दे रही है। विश्व के सामने गर्व करने में क्या जाता है।

देश के मनोबल को तोड़ने वाली बातों में न उलझें
सोशल मीडिया में देखा होगा कि फुटपाथ पर बैठी बूढ़ी मां दीया जलाकर बैठी थी। हम उसका मखौल उड़ा रहे हैं। जिसने स्कूल का दरवाजा नहीं देखा, पर उन्होंने देश में सामूहिक शक्ति का परिचय करवाया, पर इन सबका मजाक उड़ाया गया। विरोध करने के लिए कितने मुद्दे होते हैं, देश के मनोबल तोड़ने वाली बातों में न उलझें। हमारे कोरोना वॉरियर्स, जिन्होंने कठिन समय में जिम्मेदारी निभाई, उनका आदर करना चाहिए। देश ने ऐसे करके दिखाया।

कोरोना वैक्सीन का भी जिक्र किया
उन्होंने कहा कि जिस देश को थर्ड वर्ल्ड में गिना जाता है, वह देश इतने कम समय में वैक्सीन लेकर आ जाए तो गर्व होता है। दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान मेरे देश में चल रहा है। दुनिया में सबसे तेज वैक्सीनेशन अगर कहीं हो रहा है, तो वह मां भारती के इस देश में हो रहा है। आज कोरोना ने दुनिया के साथ हमारे रिश्तों को नया आयाम दिया। भारत ने 150 देशों में मानवजाति की रक्षा के लिए दवा भेजी। कई देश कह रहे हैं कि हमारे पास भारत की वैक्सीन आ गई है। विदेशों में जब लोग ऑपरेशन कराने जाते हैं तो देखते हैं कि कोई भारतीय डॉक्टर है या नहीं। अगर ऐसा होता है तो आंखों में चमक आ जाती है। यही हमने कमाया है।

उन्होंने कहा कि कोरोना के कठिन समय में देश और राज्य मिलकर कैसे काम कर सकते हैं, ये भी दिखा। मैं सबका आभारी हूं। यहां लोकतंत्र को लेकर भी काफी कुछ कहा गया (हंसते हुए)। मैं नहीं मानता कि कोई भी नागरिक इस पर भरोसा करेगा। हम किसी की खाल उधेड़ सकते हैं, ऐसी गलती न करें।

राज्यसभा में भी बंगाल नहीं भूले
उन्होंने कहा कि डेरेक ओ’ब्रायन से इंटीमिडेटेशन, हाउडी जैसे शब्द सुन रहा था, तो लगा कि बंगाल की बात रहे हैं कि देश की। बहुत देर तक जब बोलते रहे तो लगा कि इमरजेंसी तक पहुंचेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। देश की मूलभूत शक्ति को समझने का प्रयास करें। हमारा लोकतंत्र वेस्टर्न नहीं, ह्यूमन इंस्टीट्यूशन है।

उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में 181 गणतंत्रों का वर्णन है। भारत का राष्ट्रवाद न संकीर्ण, न स्वार्थी और न ही आक्रामक है। यह सत्यम, शिवम, सुंदरम से प्रेरित है। ये कथन सुभाष चंद्र बोस का है। जाने-अनजाने में हमने नेताजी की इस भावना को, उनके विचारों, आदर्शों को भुला दिया है। इसका परिणाम है कि हम खुद को कोसने लगते हैं।

उन्होंने कहा कि दुनिया हमें जो शब्द दे देती है, उसे पकड़कर चलने लगते हैं। हमने युवा पीढ़ी को सिखाया ही नहीं कि यह देश लोकतंत्र की जननी है। ये बात हमें गर्व से बोलनी होगी। भारत की शासन व्यवस्था से ही हम लोकतांत्रिक नहीं है, मूलत: हम लोकतांत्रिक हैं, इसलिए ये व्यवस्था है। इमरजेंसी को याद कीजिए कि उस समय क्या हाल था। हर संस्था जेल बन चुकी थी। पर संस्कारों की ताकत थी, लोकतंत्र कायम रह सका।

आत्मनिर्भर भारत की दुनिया में जय-जयकार हो रही
उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत पर भी चर्चा हुई। भारत में जबर्दस्त निवेश हो रहा है। एक तरफ निराशा का माहौल है। डबल डिजिट में ग्रोथ का अनुमान है। हर महीने हम 4 लाख करोड़ का डिजिटल ट्रांजैक्शन कर रहे हैं। पहले सुन रहे थे कि बड़ी आबादी डिजिटल ट्रांजैक्शन कैसी करेगी। पर आज कहानी कुछ और है। दुनिया में इसकी जय-जयकार हो रही है।

उन्होंने कहा कि रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में हमने अपनी जगह बना ली है। जल, थल, नभ में भारत अपनी रक्षा के लिए मुस्तैद है। सर्जिकल स्ट्राइक में भारत की कैपेबिलिटी सबने देखी है। 2014 में जब पहली बार सदन में आया था, तो कहा कि सरकार गरीबों को समर्पित है। आज फिर यही बात कहता हूं। हमने अपना लक्ष्य डायल्यूट नहीं किया है। पहले के प्रयासों में और जोड़ने होंगे।

उन्होंने कहा कि गरीब में आत्मविश्वास भर गया तो वह खुद गरीबी को चुनौती देने लगेगा। 2 करोड़ से ज्यादा गरीबों के घर बने, 5 लाख से ज्यादा का इलाज, 51 करोड़ के नए खाते, ये सब बातें गरीबों में आत्मविश्वास भर रहे हैं। चुनौतियां जरूर हैं, पर तय यह करना है कि हम समस्या का हिस्सा बनना चाहते हैं या समाधान का। समस्या का हिस्सा बनेंगे, तो राजनीति चलेगी। समाधान का हिस्सा बनेंगे, तो राष्ट्रनीति मजबूत होती चली जाएगी।

किसान आंदोलन पर भी बोले मोदी
उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन पर खूब चर्चा हुई। मूल बात पर चर्चा होती, तो अच्छा होता। कृषि मंत्री ने अच्छे ढंग से सवाल पूछे, पर उनके जवाब नहीं मिलेंगे। देवेगौड़ा जी सरकार के प्रयासों की सराहना की, क्योंकि वे कृषि से लंबे समय से जुड़े रहे हैं। आखिर खेती की समस्या क्या है? मैं चौधरी चरण सिंह के हवाले से कहना चाहता हूं। उन्होंने 1971 में कहा था- 33% किसानों का पास जमीन 2 बीघे से कम है। 18% के पास 2 से 4 बीघा जमीन है। 51% किसानों की गुजर-बसर जमीन से नहीं हो सकती।

मोदी ने कहा कि देश में ऐसे किसानों की संख्या बढ़ रही है, जिनके पास 2 हेक्टेयर के कम जमीन है। ऐसे 12 करोड़ किसान हैं। हमें योजनाओं के केंद्र में 12 करोड़ किसानों को रखना होगा, तभी चौधरी साहब को श्रद्धांजलि होगी।

10 करोड़ किसान के खाते में सीधे पैसे पहुंचाए जा रहे
उन्होंने कहा कि एक अन्य बात सोचनी होगी। चुनाव आते ही एक कार्यक्रम होता है- कर्ज माफी। इससे छोटे किसान का कोई फायदा नहीं होता, क्योंकि उसका तो बैंक का खाता भी नहीं होता। पहले की फसल बीमा योजना बड़े किसान के लिए थी, जो बैंक से लोन लेता था। सिंचाई की सुविधा भी बड़े किसान के लिए थी, वे ही ट्यूबवेल लगा सकते थे। बड़े किसान ही यूरिया ले सकते थे, छोटे किसान को तो लाठियां खानी पड़ती थीं।

उन्होंने कहा कि 2014 में फसल बीमा योजना का दायरा बढ़ाया। बीते 4-5 साल में किसानों को फसल बीमा योजना से 90 हजार करोड़ रुपए मिले हैं। हर किसान को किसान क्रेडिट कार्ड दे रहे हैं। मछुआरों तक को यह दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री सम्मान निधि योजना के जरिए 10 करोड़ किसान के खाते में सीधे पैसे पहुंचाए जा रहे हैं। बंगाल के किसान भी इसमें जुड़ जाते तो आंकड़ा ज्यादा होता।

हर सरकारों ने कृषि सुधारों की वकालत की
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना किसान की जिंदगी बदलने वाली योजना है। अब किसान शहरों तक अपना माल आकर बेच रहा है। किसान उड़ान योजना का लाभ भी किसान उठा रहा है। हर सरकारों ने कृषि सुधारों की वकालत की है। सबको लगा कि अब समय आ गया है कि ये हो जाएगा। मैं भी दावा नहीं कर सकता कि हम सबसे अच्छा सोच सकते हैं। आगे नई सोच आ सकती है। इसको कोई रोक नहीं सकता। आप किसानों को ये भी बताते कि वक्त की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह ने किसानों को भारत में एक बाजार देने की बात कही थी। आप लोगों को गर्व करना चाहिए कि जो बात सिंह साहब ने कही थी, वो मोदी कर रहा है। मजा ये है जो लोग राजनीतिक बयानबाजी करते हैं, विरोधियों ने भी अपने राज्यों में कुछ न कुछ किया है।

कुछ लोग चाहते हैं कि देश अशांत रहे : मोदी
उन्होंने कहा कि भारत की ताकत समस्याओं के समाधान की रही है, पर कुछ लोग चाहते हैं कि देश अशांत रहे। पंजाब का क्या हुआ? बंटवारा हो या 1984 के दंगे, पंजाब के लोगों का नुकसान हुआ। नॉर्थईस्ट की घटनाओं से नुकसान हुआ। हर सरकार ने यह देखा है। यह देश सिख के लिए गर्व करता है। इन्होंने देश के लिए क्या कुछ नहीं किया।

विदेशी हस्तक्षेप का भी जवाब दिया
उन्होंने कहा कि मैंने कई साल पंजाब में बिताए हैं। मैं उन लोगों को जानता हूं। हम लोग कुछ शब्दों से परिचित हैं- श्रमजीवी, बुद्धिजीवी। कुछ समय से नई बिरादरी सामने आई- आंदोलनजीवी। ये जमात आप देखें- वकील, स्टूडेंट, मजदूर हर आंदोलन में ये लोग दिखेंगे। आंदोलनजीवियों की पूरी टोली है। इन्हें पहचानना होगा। ये लोग गुमराह कर रहे हैं। देश को इससे बचना होगा। ये सारे आंदोलनजीवी, परजीवी होते हैं। एक नई चीज ये भी देख रहा हूं, एक नया FDI आया है, फॉरेन डिस्ट्रक्टिव आइडियोलॉजी। इससे जागरूक रहने की जरूरत है।

हंगामेदार रही कार्यवाही
बजट सत्र की कार्यवाही अब तक हंगामेदार रही है। विपक्ष लगातार सरकार को नए कृषि कानूनों के मुद्दे पर घेर रहा है। एक स्थिति तो ऐसी भी आई कि हंगामे के दौरान उपराष्ट्रपति और सभापति वैंकेया नायडू को विपक्ष से कहना पड़ा कि गलत उदाहरण मत पेश करिए। लोगों को गुमराह न करिए कि कोई चर्चा (किसान कानूनों पर) नहीं हुई थी। वोटिंग हुई थी और सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपने सुझाव और तर्क दिए थे।

बजट सेशन की प्रोडक्टिविटी 82% रही
सरकार के मुताबिक, बजट सत्र की प्रोडक्टिविटी 82.10% रही। बैठक का कुल समय 20 घंटे 34 मिनट रहा। 3 फरवरी को विपक्षी सांसदों के विरोध के कारण 4 घंटे 14 मिनट खराब हुए। इसके चलते सांसद 33 मिनट एक्स्ट्रा बैठे।

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