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मातृभाषा हिंदी का महत्व बताने बैंक, शिक्षा के साथ चिकित्सा के क्षेत्र में शुरू हुई नई पहल, लोगों को मिल रही ये सुविधा
रायपुर, 14 सितंबर 2022/ हमारी मातृभाषा हिंदी का महत्व बताने अब बैंकों की ओर से भी नई पहल शुरू की गई है। इसके तहत बैंकों से आने वाले संदेश के साथ ही एटीएम में होने वाले लेनदेन भी अब हिंदी में होने लगे हैं। बताया जा रहा है कि बैंकों के हिंदी में मैसेज तो बैंक आफ बड़ौदा के बाद सेन्ट्रल बैंक ने भी शुरू कर दिया है। साथ ही जल्द ही कुछ अन्य बैंक भी शुरू करने की तैयारी में है।
वहीं दूसरी ओर अब एटीएम का लेनदेन भी लोगों की सुविधा का ध्यान रखते हुए मशीन के अंदर ही हिंदी का अलग से कालम दे दिया गया है,जिसे दबाने पर ग्राहक हिंदी में ही अपना पूरा लेनदेन कर सकते है। इसके साथ ही मशीन से निकलने वाली पर्ची भी हिंदी में आ रही है। उपभोक्ता द्वारा भी इसे काफी पसंद किया जा रहा है। सेन्ट्रल बैंक के अधिकारी व राजभाषा समिति के समन्वयक अनिल चौबे ने बताया कि समिति द्वारा हिंदी को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती है। इसके साथ ही अधिकांश कार्य हिंदी में ही करने की कोशिश की जाती है।
लेनदेन पर्ची भी हिंदी में
बैंकों में पैसे के लेनदेन में उपयोग की जाने वाली जमा या निकालने वाली पर्ची भी अलग से हिंदी में आने लगी है। बैंक ग्राहक इसका उपयोग कर सकते है। इसके साथ ही बैंकोंकी ब्याज दरों व जमा योजनाओं की जानकारी भी हिंदी में चस्पा की जाती है ताकि लोग इसे आसानी से समझ सके।
चिकित्सक हिंदी में लिखते हैं पर्चा ताकि सरलता से समझ सके मरीज
चिकित्सा के क्षेत्र में मातृभाषा हिंदी के विस्तार देने में आयुर्वेद चिकित्सा की बड़ी भूमिका रही है। रायपुर आयुर्वेद कालेज में इलाज के दौरान दवाओं का पर्चा हिंदी में लिखा जाता है। यह परंपरा काफी पुरानी है। आयुर्वेद कालेज के चिकित्सा विशेषज्ञ डा. संजय शुक्ला ने बताया कि हिंदी मातृभाषा होने के साथ हमारा गर्व है। हमारी भाषा समाज को भावनात्मक रूप से भी जोड़ती है।
रायपुर आयुर्वेद कालेज समेत राज्य में भी आयुर्वेद चिकित्सक हिंदी में ही पर्चा लिखते हैं। ताकि मरीजों को सरलता से समझाया जा सके। चिकित्सक दवाओं के नाम से लेकर खाने की विधि व अन्य सलाह हिंदी में ही लिखकर मरीजों को देते हैं। इससे मरीजों को दवाएं लेने में परेशानी नहीं आती। दवाओं की समझ भी विकसित होती है। भारत सरकार द्वारा भी आधुनिक चिकित्सा पद्धति में हिंदी को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है।
रविवि में पीएचडी की सीटें रहती हैं फुल, पीजी में 10 सीटें बढ़ाईं
प्रदेश के सबसे बड़े विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य के प्रति विद्यार्थियों का अच्छा रूझान है। यहां पीएचडी की सभी सीटें हर बार फुल रहती हैं। जिसमें प्रोफेसर के लिए तय आठ, असिस्टेंट के लिए छह और एसोसिएट प्राेफेसर की सभी चार सीटें हमेशा फुल रहती हैं। इस वर्ष एमए की पीजी में सीटें 20 से बढ़ाकर 30 कर दी गई हैं। वहीं, सीजीपीएससी में कई छात्र हिंदी विषय का चयन करते हैं, जिसकी वजह से पीएचडी सहित पीजी की भी सीटों पर प्रवेश लेने वालों की संख्या अच्छी रहती है।
हिंदी साहित्य मंडल हर माह कर रहा तीन संगोष्ठी
इसके अलावा हिंदी साहित्य मंडल छत्तीसगढ़ द्वारा भी हिंदी को बचाने के साथ ही इसका ज्यादा से ज्यादा उपयोग करने पर जोर दिया जा रहा है। इसके लिए हर माह दो से तीन संगोष्ठी का आयोजन किया जाता है। साथ ही वार्षिक अधिवेशन और वर्कशाप का आयोजन भी किया जाता है।