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राज्‍यपाल के 10 सवालों का छत्‍तीसगढ़ सरकार ने भेजा जवाब, CM बघेल बोले- हस्ताक्षर में नहीं करनी चाहिए देरी

2 years ago
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छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल सबसे अच्छे सीएम के रूप में उभरे | 🇮🇳 LatestLY हिन्दी

रायपुर, 25 दिसंबर 2022/   छत्तीसगढ़ में जारी आरक्षण के मसले पर घमासान शायद अब समाप्त हो। प्रदेश सरकार के विभागों ने राजभवन की ओर से मांगी गई जानकारियां दे दी हैं। अब इस मसले पर प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि जल्द से जल्द राज्यपाल अनुसुइया उइके काे संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर कर देने चाहिए।

आरक्षण संशोधन विधेयक पर मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्यपाल के 10 सवालों का जवाब राजभवन भेज दिया है। आरक्षण संशोधन विधेयक पर बिल पर हस्ताक्षर को लेकर सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि राजभवन जवाब भेजा गया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि संविधान में ऐसी व्यवस्था नहीं है, फिर भी जवाब भेजे गए हैं। अब राज्यपाल को हस्ताक्षर करने में देरी नहीं करनी चाहिए। वैसे इस आरक्षण बिल पर प्रदेश में आज भी राजनीति गरमाई हुई है।

इन 10 सवालों का मांगा था जवाब
साइन से पहले राज्यपाल के सरकार से 10 सवाल

संशोधित विधेयक में क्रमांक 18-19 पारित करने के पूर्व अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के संबंध में मात्रात्मक विवरण (डाटा) संग्रहित किया गया था?

सुप्रीम कोर्ट में इंद्रा साहनी मामले के अनुसार 50 प्रतिशत से अधिक विशेष एवं बाध्यकारी परिस्थतियों में ही आरक्षण दिया जा सकता है। अत: उक्त विशेष बाध्यकारी परिस्थिति का विवरण क्या है?

राज्य शासन ने हाईकोर्ट में 19 सितंबर 2022 को 8 सारणी में विवरण भेजा था, जिस पर कोर्ट ने कहा था कि ऐसा कोई विशेष प्रकरण निर्मित नहीं है, कि 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण दिया जाए। इस निर्णय के बाद ऐसी क्या विशेष परिस्थिति उत्पन्न हो गई, जिसके कारण आरक्षण की सीमा बढ़ाई गई?

सुप्रीम कोर्ट में इंद्रा साहनी के मामले में कहा गया था कि एससी-एसटी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए नागरिकों में आते हैं। इस संबंध में राज्य के एससी-एसटी व्यक्ति किस प्रकार पिछड़े हुए हैं?

मंत्री परिषद में महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्य के आरक्षण के प्रतिशत का उल्लेख है। इन राज्यों में आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक किए जाने से पहले आयोग का गठन किया गया था। छत्तीसगढ़ में इसके लिए कौन सी कमेटी गठित की गई?

सामान्य प्रशासन विभाग ने क्वांटिफाइबल डाटा आयोग के गठन का उल्लेख किया है, जिसकी रिपोर्ट शासन के पास है। यह रिपोर्ट राजभवन में प्रस्तुत क्यों नहीं की गई?

सामान्य प्रशासन विभाग ने विभागीय प्रस्ताव अर्थात प्रस्तावित संशोधन के संबंध में शासन के विधि एवं विधायी कार्य विभाग का अभिमत अपेक्षित होना लिखा है। छत्तीसगढ़ लोक सेवा अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन में शासन के विधि एवं विधायी कार्य विभाग का क्या अभिमत है?

विधेयक में नवीन धारा स्थापित कर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 4 प्रतिशत आरक्षण दिये जाने का प्रावधान किया गया है। क्या शासन को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए संविधान के अनुच्छेद 16(6) के तहत पृथक से अधिनियम लाना चाहिए था?

हाईकोर्ट में राज्य शासन ने बताया है कि एससी-एसटी के व्यक्ति कम संख्या में चयनित हो रहे हैं। ऐसे में यह बताएं कि एससी-एसटी राज्य की सेवाओं में क्यों चयनित नहीं हो रहे हैं?

एसटी को 32, ओबीसी को 27, एससी को 13, इस प्रकार कुल 72 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है। यह आरक्षण लागू करने से प्रशासन की दक्षता का ध्यान रखा गया और क्या इस संबंध में कोई सर्वेक्षण किया गया है?

मुख्यमंत्री पहले भी जता चुके हैं नाराजगी
राजभवन की ओर से विभागों से किए जा रहे सवालों पर पहले भी मुख्यमंत्री नाराजगी जता चुके हैं। उन्होंने अपने पिछले बयान में कहा था – उन्हें वो अधिकार ही नहीं। राजभवन के विधिक सलाहकार हैं, गलत सलाह दे रहे हैं । पहले राज्यपाल ने कहा था कि जैसे ही विधानसभा से प्रस्ताव आएगा मैं हस्ताक्षर करूंगी। आरक्षण किसी एक वर्ग के लिए नहीं होता है। सारे नियम होते हैं क्या राजभवन को पता नहीं, विधानसभा से बड़ा है क्या कोई विभाग ?

CM ने तीखे अंदाज में कहा- विधानसभा से पारित होने के बाद किसी विभाग से जानकारी नहीं लनी जाती। भाजपा के लोगों के इशारों पर राजभवन का खेल हो रहा है। राज्यपाल की ओर से स्टैंड बदलता जा रहा है। फिर कहती हैं कि केवल आदिवासियों के लिए बोली थी, आरक्षण सिर्फ उनका नहीं सभी वर्गों का है। आरक्षण की पूरी प्रक्रिया होती है।

अपने बयान के दाैरान मुख्यमंत्री ने ये भी बताया कि विधानसभा की सारी कार्रवाई एक स्पीकर के जरिए राजभवन में ट्रांसमीट की जाती है। वहां बैठे-बैठे अफसर या राज्यपाल पूरी कार्रवाई को सुन सकते हैं। सीएम ने कहा- विधानसभा की कार्यवाही सीधा राजभवन में सुनाई देती है। वहां स्पीकर लगा रहता है, क्या जब आरक्षण प्रस्ताव पारित हुआ तो सारी प्रकिया के बारे में जानकारी नहीं थी राजभवन को। भाजपा की कठपुतली की तरह राजभवन के अधिकारी उनके निर्देशों पर काम कर रहे हैं। ये प्रदेश के हित में नहीं है।

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