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प्रदेश की राजधानी में फरमान बेअसर, फिलहाल पुराने तरीके से ही मरम्मत कार्य जारी, सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया आदेश
बिलासपुर, 03 जनवरी 2023/ हर साल सड़कों की मरम्मत से कई कॉलोनियां अब ढलान में बस गई हैं। मसलन रिहायशी मकान सड़कों के नीचे आ गए हैं। तेज बारिश हुई तो सड़कों का पानी सीधे घरों को डुबा रहा है। पानी के जमाव के कारण सड़कें तक टूट रही हैं। प्रदेश की राजधानी में ही तस्वीरें आम हैं, जहां नई सड़कों के नीचे कॉलोनी डुबान क्षेत्र में तब्दील हो गई हैं, जबकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने नया फरमान जारी कर बिना खोदाई किए किसी भी सड़क की मरम्मत को लेकर सख्ती के आदेश दिए हैं। कोर्ट की मानें तो निर्माण एजेंसी पुराने डामर की परतें खोदकर ही उसमें नई सड़कों का निर्माण करें। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला बिलासपुर और अंबिकापुर से लगी दो याचिका के बदले सुनाया है। एडवोकेट ऑन रिकार्ड सुप्रीम कोर्ट कौस्तुभ शुक्ला ने यह जानकारी दी। एडवोकेट ने बताया कि पूर्व में याचिकाकर्ता हाईकोर्ट पहुंचे थे। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा। सड़कों की मरम्मत की वजह से कॉलोनियों में परेशानी बढ़ने के बाद उच्चतम न्यायालय ने सख्त फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार को आदेश जारी किया। नगरी क्षेत्रों में निगम आयुक्त द्वारा किसी भी रास्ते की ऊंचाई का निर्धारण किया जाना आवश्यक है। उसके बाद ही सड़क के लिए मरम्मत का काम होना चाहिए।
कमजोर पकड़ से बाहर निकली बजरी
शहर की कॉलोनियों में ज्यादातर सीसी रोड है। सालों पुराने कांक्रीट के ऊपर भी परतें चढ़ाई जा रही हैं। इधर हाइवे की बायपास डामर वाली सड़कों पर भी गड्ढा पाटने और ऊपर की मोटाई मेंटेन करने डामर की चादर बिछाई जा रही है। कई सड़कें अब ऐसी हालत में है कि ऊपर चढ़ाई गई परतों ने दम तोड़ दिया है। डामर छोड़कर बजरी बाहर निकल आई है।
पंडरी से फाफाडीह के बीच बन रहे एक्सप्रेस वे के लिए पुरानी सड़क के ऊपर सर्विस रोड का निर्माण। आसपास की मकानें सड़क के नीचे हो गई है। बारिश होने पर सड़कों का पानी सीधे घरों में। कई बार बाढ़ के हालात से दोगूना परेशानी।
केस दो
देवेंद्र नगर सेक्टर इलाके में रिहायशी कॉलोनी के मकान सड़क के नीचे पहुंचे। सड़क के मरम्मत के नाम पर तीन सालों में कई बार अलग-अलग जगहों पर परतें चढ़ाई। लेबल मेंटेन करना भूल गए।
लोक निर्माण विभाग खामोश
सड़क निर्माण और मरम्मत को लेकर लोक निर्माण विभाग ने चुप्पी साध रखी है। संपर्क करने के बाद भी अधिकारियों ने किसी तरह का जवाब नहीं दिया। हर साल करोड़ों रुपये मरम्मत के नाम पर खर्च किए जा रहे हैं।